बाँधे द्वार काकरी चतुर चित्त काकरी सो
bandhe dwar kakari chatur chitt kakari so
बेनी बंदीजन
Beni Bandijan
बाँधे द्वार काकरी चतुर चित्त काकरी सो
bandhe dwar kakari chatur chitt kakari so
Beni Bandijan
बेनी बंदीजन
और अधिकबेनी बंदीजन
बाँधे द्वार काकरो चतुर चित्त काकरी सो,
उम्मर वृथा करी न राम की कथा करी।
पाप को पिनाकरी न जाने नाक नाकरी,
सुहारिलकी लाकरी निरंतरही नाकरी॥
ऐसी सूमता करी न कोऊ ममता करी सो,
‘बेनी’ कविता करी प्रकाश तास ताकरी।
देव अरचा करी न ज्ञान चरचा करी,
न दीन पै दया करी न बाप की गया करी॥
- पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (प्रथम भाग) (पृष्ठ 276)
- संपादक : सुधाकर पांडेय
- रचनाकार : बेनी बंदीजन
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
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