बादर रसाल पर दामिनी को ख्याल किधौं
badar rasal par damini ko khyal kidhaun
बादर रसाल पर दामिनी को ख्याल किधौं,
चंपक की माल सी लसत बाल लाल पै।
रति के मुकुर पै भुवंगिनी लसत कीधौं,
कारी-कारी लर लटकत गोरे गाल पै॥
द्विजराज श्रीपति रसिकमनि सीसफूल,
रुचुकि-रुचुकि कै परत आछे भाल पै।
मेरी जान नखत समेत रवि नटवर,
थारी हाला भरि नाची काली के कपाल पै॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 216)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : श्रीपति
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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