आवत है जांकै भीख मांगन भिखारी दीन
aawat hai jankai bheekh mangan bhikhari deen
भाई गुरुदास
Bhai Gurudas
आवत है जांकै भीख मांगन भिखारी दीन
aawat hai jankai bheekh mangan bhikhari deen
Bhai Gurudas
भाई गुरुदास
और अधिकभाई गुरुदास
आवत है जाकै भीख मांगन भिखारी दीन,
देखत अधीनता निरासो न बिडारि है।
बैठत है जाकै द्वार आसा को बिडारि स्वान,
अंत करुणा कै तोरि टूक तांहि डरि है।
पायन की पनही रहत परहरी परी,
ताहू काहू काजि उठि चल सम्हार है।
छाडि अहंकार छारु होइ गुरमारग में,
कबहूँ दया कै आनि दयालु पगु धारि है॥
- पुस्तक : कवित्त-सवैये (पृष्ठ 170)
- रचनाकार : भाई गुरुदास जी भल्ला
- प्रकाशन : शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर
- संस्करण : 1956
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