एक दिन ऐसा बने लाखों ही सलाम करे
ek din aisa bane laakho.n hii salaam kare
निपट निरंजन
Nipat Niranjan
एक दिन ऐसा बने लाखों ही सलाम करे
ek din aisa bane laakho.n hii salaam kare
Nipat Niranjan
निपट निरंजन
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एक दिन ऐसा बने लाखों ही सलाम करे,
एक दिन ऐसा बने मातम का तमाशा है।
एक दिन ऐसा बने खजाने की भेंट करे,
एक दिन ऐसा बने जंगल का बासा है॥
एक दिन ऐसा बने अन्न का भंडारा चले,
एक दिन बने फांके, रोटि का अंदेशा है।
कै ‘निपट निरंजन', सुनो आलमगीर,
आज दिन ऐसा, न जाने कल दिन कैसा है॥
- पुस्तक : निपट निरंजन की बानी (पृष्ठ 75)
- संपादक : राजमल बोरा
- रचनाकार : निपट निरंजन
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1992
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