जब तैं सिधारे स्याम, तब तैं भुरानो गेह
jab tain sidhare syam, tab tain bhurano geh
गिरिधर पुरोहित
Giridhar Purohit
जब तैं सिधारे स्याम, तब तैं भुरानो गेह
jab tain sidhare syam, tab tain bhurano geh
Giridhar Purohit
गिरिधर पुरोहित
और अधिकगिरिधर पुरोहित
जब तैं सिधारे स्याम, तब तैं भुरानो गेह,
भूलिगौ कामकाज नांहीन सचति हैं।
सेत भये अधर, उसास के समीरन सौं,
नैननि को वारि, मेघ-धार-सौ रचति है।
ठाढ़ी मौन द्वार-बार तांसु आंस भारति,
गिरिधारी बिरह के, शिखी सौं पचति है।
दीजे ताहि दरस-प्रस, प्राननाथ प्यारे,
तेरो मुष-चंद देषिबे कौं ललचति है॥
- पुस्तक : शृंगारमंजरी (पृष्ठ 76)
- रचनाकार : गिरिधर पुरोहित
- प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
- संस्करण : 1982
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