युगों की अपरिमित तृष्णा लिए
yungon ki aparimit trishna ke liye
कई युगों की अपरिमित तृष्णा लिए
उगती चली आ रही है उत्कट लालसा
उदयाचल की बरौनियों के बीच
चमकती बिंदी की तरह झिलमिलाती…
जगन्नियंता की आरेखीय कक्षा में
तालबद्ध स्वराघात में पदन्यास के साथ
गंधवती के आँगन में
दिव्य उषासूक्त का
निनाद करती
प्राचीनता को नित्य नूतन करती
अंग-प्रत्यंग में अद्भुत सम्मोहन से भरी
मानो सुंदरता की प्रतिसृष्टि
उसके कालचक्रांकित ऋतु-नर्तन में
परिवर्तन के मंथन से
क़रीने से अलग हटाती
समय का चिरंतन नवनीत
वत्सल माटी में रोपती संचित सुडौल
युगधर्म का प्रसव करती पुनर्नवा खोह में
पीढ़ियों को पिलाती
निरंतर ममता
और भरती पाथेय
चराचर की क्षुधा के मुख में
युगों के संभ्रमित तिराहे के समीप
सभ्यता के ढीठ कोलाहल में
विज्ञान से रिसते संक्रमण से
हाथ मिलाते हुए
शिक्षा का उजाला लिए
जीवटता के साथ खड़ी वह दुर्दम्य जिजीविषा
शोषण के ग्रहण को
दृढ़ता से दूर करते हुए
उपेक्षाओं को
चिलचिलाती धूप देती
और रूढ़ियों-परंपराओं के विनाश की कगार पर
पैर जमाए
संविधान के तत्त्वों को घुमाती
कब से खड़ी है वह उत्सुक संपूर्णा…
मनुष्य होने का मन्वंतर देखने को आतुर।
- पुस्तक : सदानीरा
- संपादक : अविनाश मिश्र
- रचनाकार : आश्लेषा महाजन
- प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.