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यह लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप नहीं हो सकता

ye loktantr ka sachcha swarup nahin ho sakta

मिथिलेश श्रीवास्तव

मिथिलेश श्रीवास्तव

यह लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप नहीं हो सकता

मिथिलेश श्रीवास्तव

और अधिकमिथिलेश श्रीवास्तव

    कुछ कहने के लिए बहुत कुछ बचा है

    कहने के पहले ही आप मुझे डरा देते हैं

    कभी आप कह देते हैं कि जो मैं कहने वाला हूँ

    पहले ही कहा जा चुका है

    कभी आप कह देते हैं कि मेरे कहने का कोई असर नहीं होने वाला है

    कभी आप कह देते हैं कि जो कहना है अकेले में मेरे कान में कहिए

    और लोगों से कह देते हैं कि मैंने कुछ कहा ही नहीं

    लेकिन मैं कहना क्या चाहता हूँ

    कैसे कहूँ कि यह दुनिया वैसी नहीं है

    जैसी यह दुनिया होनी चाहिए

    दूध जो मेरे हिस्से आना चाहिए कोई और पी जाता है

    मेरे हिस्से आता है पानी और अपने आप को नसीबदार मानता हूँ

    कइयों के हिस्से पानी भी नहीं आता

    पानी के पीछे भागते लोगों को पागल समझने वाले लोगों

    यह लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप नहीं हो सकता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मिथिलेश श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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