ओ यंत्र आ
शस्य श्यामल धरती को आलिंगन में कसके
समाज-पुरुष ने किया मैथुन,
इस उत्कट सुरति के—
विज्ञानात्मक दाहक वीर्य से
जिसका पिण्ड बना है फ़ौलादी,
ऐसा अवतारी यंत्र
आ और युगधर्म का कर संवर्धन।
आ, गूँथ कर क्रांति की वेणियाँ
इतिहास के गर्भ को भेद कर
त्रिविक्रम के ओ ग्यारहवें अवतार।
ओ यंत्र आ
आकाश को वाणी देते हुए
क्रोधित बुभुक्षा की शक्ति
आती है करती हुई जय-जयकार,
पेट की हड्डियाँ उभर कर
ऊँचे स्वर में उठाती ललकार,
'स्वीकारो इस यंत्र को
सत्कारो इस यंत्र को’
वेदोक्त पूजा करो इस यंत्र की
यह साम्यवेद या पंचमवेद कहाये।
अग्नि को कलिका, लाल यह ध्वजा
यंत्र के सिर पर चढ़ाओ।
अग्नि की कली यह
पिचके हुए पेटों की आग की ज्वाला यह,
पद-दलितों के आँखों की क्रोधित यह लाली,
यह है कुंकुम तिलक : नीति ने लगाया इसे
प्रगति के माथे पर।
करो इस यंत्र को स्वीकार
'करो इस यंत्र का सत्कार'
अग्नि-कली अर्पित करो यंत्र पर
आओ—आओ पामर : और बनो परमेश्वर।
ब्रह्मा के चाक पर
स्वर-गंगा का पट्टा चढ़ाकर
विश्व विधाता ईश्वर ने भी
इस यंत्र को स्वीकारा।
आ यंत्र आ
सृष्टि को बनाते आ
कष्टों को सुखाते आ,
आ तू बन कर ब्रह्मा, विष्णु, महेश
आ तू नई रचना के वेदों को गुँजाते,
आ, आ, घुमाते हुए अपना चक्र सुदर्शन,
आ, आ, दिखाते हुए युगप्रवर्तक तांडव नृत्य।
आ, आ, वाष्प की फूत्कारें छोड़ते
आ, आ, आँखों में बिजलियाँ घुमाते,
आ, आ, अणुयुग की ज़ंजीरें तोड़ते,
शक्ति के सम्राट् ओ
चिरशांति के चारण ओ,
छिपे हुए मंत्रों को उच्चारित करते
देकर मानवता को
ज्ञान में से मुक्ति का उपहार।
आ यंत्र, आ यंत्र
खड्, खड्, खड्, खट्, खट्, खट्
चीरते हुए, फाड़ते हुए
पिसी हुई हड्डियों को।
नए बीज, नए अंकुरों का
अस्थिमज्जा से कर पोषण।
धिक् धिक् धिक् धिक् धिक् धिक्
ऊँचे स्वर में
सड़े हुए, झरे हुए, गले हुए को धिक्कारता;
धड़-धड़-धड़-धड़-धड़-धड़
सृजनात्मक चेतना को
मंत्रबल से उद्घोषित करता।
आ यंत्र, आ यंत्र
यंत्रों को सार्थक करते
स्वप्नों को स्वीकृत करते
उच्चारण करते, देते आकार उन्हें।
आ यंत्र, आ यंत्र।
जलाते हुए, भस्म करते हुए
भक्षण करते, रक्षण करते
आ, तोड़ते-जोड़ते,
आ, काटते-बोते
आ, सहलाते फलित करते,
लाल नौकाएँ हाँकते
लाल-लाल नदियों पर
लाल-लाल क्षितिज पर से,
आ यंत्र, आ यंत्र
मंत्रों को सार्थक करते
स्वप्नों को स्वीकृत करते
उच्चारण करते, देते आकार उन्हें।
आ यंत्र, आ यंत्र
नए मानव को गढ़ता
नए मूल्य उद्घाटित करता
क्रांतिपाठ उद्घोषित करता—
“पृथिवी क्रान्तिरन्तरिक्ष्० क्रान्तिद्योः क्रान्तिर्दिशः
क्रान्तिरवान्तरदिशाः क्रान्तिरग्निः क्रान्तिर्वायुः
क्रान्तिश्चन्द्रमाः क्रान्तिर्नक्षत्राणि क्रान्तिरापः
क्रान्तिरोषधयः क्रान्तिर्वनस्पतयः क्रान्तिर्गोः
क्रान्तिरजा क्रान्तिरश्वः क्रान्तिः पुरुषः क्रान्तिर्ब्रह्म
क्रान्तिर्ब्राह्मणः क्रान्तिः क्रान्तिरेव क्रान्तिर्मे
अस्तु क्रान्तिः
ॐ क्रान्तिः क्रान्तिः क्रान्तिः”
- पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 171)
- रचनाकार : विंदा करंदीकर
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
- संस्करण : 1965
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