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यहाँ कुछ ख़ून दिखता है बहा हुआ

yahan kuch khoon dikhta hai baha hua

सत्यपाल सहगल

सत्यपाल सहगल

यहाँ कुछ ख़ून दिखता है बहा हुआ

सत्यपाल सहगल

और अधिकसत्यपाल सहगल

    यहाँ कुछ ख़ून दिखता है बहा हुआ

    यहीं हुई होगी मुठभेड़

    यहीं टूटे हैं कुछ पौधे

    एक फटा थैला

    जूतों की बिखरी एक जोड़ी

    यहाँ कुछ बारूद की गंध

    कुछ पसीना

    कुछ तस्वीरें फटी

    कुछ कराहें अब भी तैरती-सी हवा में

    यही है वह निर्जन

    कँटीली झाड़ियाँ वहीं

    यही हुई होगी मुठभेड़

    मेरे वीरों की

    अभी उसकी तपिश यहाँ गूँज रही है

    संदूक़ में भरा जा सकता है

    यहाँ का सन्नाटा अभी

    समेटे जा सकते हैं टूटे तीर

    कुछ पुराने चुंबनों की किरचें टूटे काँच जैसी

    अभी चमकती हैं यहाँ

    अभी प्रतीक्षा की जा सकती है

    आएगी माँ अपनी लाठी टेकती

    बहन अपनी हाय छिपाती

    ख़ौफ़ के इस जंगल में टूटे पत्ते

    गिरते और उड़ते रहेंगे

    स्रोत :
    • रचनाकार : सत्यपाल सहगल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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