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यहाँ इंसान होने की मनाही थी

yahan insan hone ki manahi thi

जीवन सिंह

जीवन सिंह

यहाँ इंसान होने की मनाही थी

जीवन सिंह

और अधिकजीवन सिंह

    मैं इस साल पहली बार

    वसंत में

    इस बाग़ में इसलिए आया

    कि यहाँ एक कोकिल का स्वर था

    सुबह-सुबह

    इतनी मीठी आवाज़ मैंने

    और कहीं नहीं सुनी

    वह बोले जा रहा था

    और तरह-तरह के

    अलग-अलग रंगों

    आकारों-बनावटों के

    श्वेत-पीत-लाल फूल

    अपनी-अपनी

    सुगंधों के साथ खिल रहे थे

    मुझे यहाँ इंसानी समाज से भी

    ज़्यादा सुकून महसूस हुआ

    मुझे लगा यह इंसानी समाजों से

    बहुत पहले बना एक आनंदलोक है

    फूल-पौधों की बग़ल में

    एक अमलतास जैसे

    रौशनी बिखेर रहा था

    अभी-अभी

    एक टिटहरी आई और

    हवा को चीरती हुई

    ज़ोरदार टिट-टिट करती गुज़र गई

    कहीं पेड़ पर

    एक चिड़िया भी बोली

    मेरा इंसान होने का भाव

    किसी सरोवर में

    कमल की तरह

    यहाँ आकर

    खिलने लगा

    जो मुहल्लों-गलियों में

    इस तरह से

    शायद ही कभी

    जग पाया हो

    इस आनंदलोक को छोड़कर

    जब सड़क पर आया

    गलियों में चला

    आस-पास देखा

    इतिहास को टटोला

    वर्तमान को निहारा

    तो देखा कि यहाँ

    इंसान होने की

    सख़्त मनाही जैसा

    अनुभव किया

    यहाँ आप

    सेठ साहूकार

    पूँजीपति

    अरब-खरब

    शंख-महाशंख

    पद्म-महापद्म के स्वामी

    हो सकते थे

    सिर्फ़ इंसान होने की मनाही थी

    यहाँ जो स्कूल थे

    जो समाज था

    उसमें तरह-तरह के

    सघन अंधकार थे

    टेढ़े-मेढे चक्रव्यूह थे

    झूठों के बड़े-बड़े

    पहाड़ थे

    इतिहास की ख़ूनी

    नदियाँ थीं

    यहाँ अहंकार की फ़सल

    सबसे ज़्यादा पैदा होती थी

    मकानों की दीवारें

    एक-दूसरे से सटी थीं

    लेकिन मन एक दूसरे से

    दूर ही नहीं

    बेहद ईर्ष्यालु थे

    यहाँ आप बहुत बड़े

    विश्वविख्यात डॉक्टर

    हो सकते थे

    आसमान तक सेतु

    बना देने वाले

    इंजीनियर हो सकते थे

    वकील बैरिस्टर

    कुछ भी हो सकते थे

    लेकिन इंसान होने की

    सख़्त मनाही थी यहाँ

    यहाँ इंसान होने की इसीलिए

    कभी कोई बात तक नहीं करता था

    कोशिश करना तो दूर

    यहाँ आप तानाशाह हो सकते थे

    जिसे लोग सबसे ज़्यादा पसंद करते थे

    लोकतंत्र था तो सही

    किंतु कोई नहीं

    जानना चाहता था

    कि उसकी ज़रूरत किसको

    और क्यों है

    नफ़रत का कारोबार चलाने वाले

    हृदयों को छेदकर

    लोकतंत्र का एक

    ख़ूनी दरवाज़ा बनाते थे

    इसीलिए यहाँ इंसान होना मना था

    इस व्यवस्था में

    आप कुछ भी हो सकते थे

    दुनिया के अरबपतियों में आपका नाम

    हर तीसरे महीने छपता था

    लेकिन इंसानों की कभी कोई सूची

    आज तक किसी अख़बार ने प्रकाशित नहीं की थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जीवन सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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