कवि, पुरुष और छली गई स्त्री

kawi, purush aur chhali gai istri

अनुराग अनंत

अनुराग अनंत

कवि, पुरुष और छली गई स्त्री

अनुराग अनंत

और अधिकअनुराग अनंत

    तुम्हारी देह के आगे कोई शब्द ही नहीं मिलता

    मेरा पुरुष मेरे कवि की बाधा है

    और मेरा कवि मेरे पुरुष की बाधा

    हम दोनों एक दूसरे को रोकते हुए आगे बढ़ रहे हैं

    बढ़ते हुए लड़ रहे हैं

    लड़ते हुए बढ़ रहे हैं

    मेरे जीवन में जितनी भी स्त्रियाँ थीं

    सबको छला मेरे पुरुष ने

    कभी राम की मुद्रा में

    कभी बुद्ध की तरह

    कभी-कभी गांधी और नरेंद्र मोदी की तरह भी

    हर नायक के नेपथ्य में एक छली गई स्त्री होती है

    स्त्रियों को छल कर ही बनते हैं नायक

    मेरा कवि सभी छली गई स्त्रियों को तिनकों की तरह बीनता है

    और घोंसला बना कर चिड़िया की तरह रहता है

    उनकी पीड़ा मेरे आकाश में बादलों की तरह बरसती है

    और मैं भीग जाता हूँ कविताओं के द्रव से

    हर कवि के आगे आगे चलती है एक छली गई स्त्री

    छली गई स्त्रियों के नेतृत्व में ही चलता है कवि

    कविता दरअस्ल एक छली गई स्त्री है

    जो भाषा के भीतर अपना एक गाँव बसाती है

    और जो कोई भी उससे होकर गुज़रता है

    उसके पाँव में अपने रक्त का आलता लगा देती है

    इस तरह कविता से गुज़रने वाले मनुष्य को

    कविता थोड़ा-सा स्त्री बना देती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराग अनंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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