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वह कुछ हो जाना चाहता है

wo kuch ho jana chahta hai

भगवत रावत

भगवत रावत

वह कुछ हो जाना चाहता है

भगवत रावत

और अधिकभगवत रावत

    तमाम उम्र से आस-पास खड़े हुए

    लोगों के बीच

    वह एक बड़ी कुर्सी हो जाना चाहता है

    अंदर ही अंदर

    पल-पल

    घंटी की तरह बजना चाहता है

    फ़ोन की तरह घनघनाना चाहता है

    सामने खड़े आदमी को

    उसके नंबर की मार्फ़त

    पहचानना चाहता है

    वह हर झुकी आँख में

    दस्तख़्त हो जाना चाहता है

    हर लिखे काग़ज़ पर

    पेपरवेट की तरह बैठ जाना चाहता है

    वह

    कुछ हो जाना चाहता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : निर्वाचित कविताएँ (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : भगवत रावत
    • प्रकाशन : इतिहासबोध प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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