नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

nazar hai nai to nazare purane

गोपाल सिंह नेपाली

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नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

गोपाल सिंह नेपाली

और अधिकगोपाल सिंह नेपाली

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    नई शाम है तो धुँधलका पुराना

    नई रात है तो सितारे पुराने

    बसाएँ कहाँ घर नई ज़िंदगी का

    लगाएँ पता क्या नई मंज़िलों का

    खिवैया तुम्हारी बँधी खाड़ियों में

    लहर है नई तो किनारे पुराने

    इधर ठोकरों पर पड़ी है जवानी

    उधर सिर उठाए खड़ी राजधानी

    महल में पुराने दिए जल रहे हैं

    रुकी जा रही है नए की रवानी

    बुलाकर नए को शरण कौन देगा

    जमे हैं दुआरे-दुआरे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    चले मंज़िलों को मशालें लिए जो

    अँधेरे-अँधेरे पहुँच तो गए वो

    सवेरा हुआ तो नई रोशनी में

    सभी भूल बैठे कुटी के दिए को

    नई चाँदनी की दुहाई मचाई

    मगर छा गए मेघ कारे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    सदा काम लेकर पुरानी नज़र से

    चले जा रहे हैं पुरानी डगर से

    मगर यह सोचें कि कब तक चलेगी

    नई ज़िंदगानी पुरानी उमर से

    बताते भी क्योंकर नई राह हमको

    पुराने नयन के इशारे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    वही सूत-चरख़ा, वही वस्त्र खादी

    करें बात अपनी, रटें रोज़ गांधी

    यहाँ बैलगाड़ी कि छत भी जिसकी

    वहाँ भाइयों ने स्पुतनिक उड़ा दी

    दिखाते रहे वे नए स्वप्न हमको

    नए रूप कहकर सिंगारे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    हमें कौन समझे कि क्या माँगते हैं

    मगर यह विनोबा, दया माँगते हैं

    इधर बाँटते हैं, उधर भीख लेकर

    भले आदमी से हया माँगते हैं

    चले दुख मिटाने नए वैद्यजी तो

    नए दर्द कहकर उभारे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    ख़बर है कि बादल समर के घिरेंगे

    कि गोले हमारे चमन पर गिरेंगे

    उधर युद्ध पर हैं उतारू पड़ोसी

    इधर भंग-गाँजा पकड़ते फिरेंगे

    कहीं नींद में ही लुटा घर बैठें

    अहिंसा के प्यारे-दुलारे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    कि इतिहास जाने हमारी ग़ुलामी

    अहिंसा के कारण पधारी ग़ुलामी

    यही फ़ैसला था हमारे करम का

    अहिंसा के करते, सिधारी गुलामी

    कि काँटे से काँटा भिड़ाकर नियति ने

    वही पाप अबकी सुधारे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    समझ में आता कि क्या है तराना

    कि तन है पुराना कि मन है पुराना

    कि अँग्रेज़ियत में रमे ख़ुद जनम-भर

    कहें और से गा शास्त्रीय गाना

    जिन्हें कामना है नई ज़िंदगी की

    उन्हें दे रहे हैं सहारे पुराने

    नई रोशनी को मिले रहा कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    कभी कटघरे से निकलकर तो देखो

    कि दलदल से दल के, उछलकर तो देखो

    मुहल्ले से बाहर, गली और भी है

    ज़रा मस्तियों में, मचलकर तो देखो

    कि छत पर टहलकर खुली धूप देखो

    झरोखे हुए अब, तुम्हारे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    हुआ देश ख़ातिर, जनम है हमारा

    कि कवि हैं, तड़पना करम है हमारा

    कि कमज़ोर पाकर मिटा दे कोई

    इसीसे जगाना धरम है हमारा

    कि मानें मानें, हम आप अपना

    सितम से हैं नाते हमारे पुराने

    नई रोशनी को मिले राह कैसे

    नज़र है नई तो नज़ारे पुराने

    स्रोत :
    • पुस्तक : संकलित कविताएँ (पृष्ठ 119)
    • संपादक : नंदकिशोर नंदन
    • रचनाकार : गोपाल सिंह नेपाली
    • प्रकाशन : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया
    • संस्करण : 2013

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