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वृंदावन

wrindawan

हेमंत शेष

हेमंत शेष

वृंदावन

हेमंत शेष

किसी निर्धन बेवा की फटी हुई बिवाई की तरह

मेरी आँख की एड़ी में रोज़ दरकता और दुखता है वृंदावन

यह दृश्य :

ज्यों भीख के लिए आगे बढ़ा एक दुचा-मुचा कटोरा

वृंदावन की पौराणिक नींद में आती जा रही हैं

बेसहारा बंगाली विधवाओं की क़तारें

गेरुई धोतियों में दमकते शिखाधारी अँग्रेज़ों के जत्थे

गौड़िया तिलक-छापों के हुजूम

‘परकम्मा मार्ग’ पर मुक्ति की आदिम आकांक्षा में

पुरानी लोइयों में लिपटे निर्धन देहातियों के सूखे हुए अस्थि-पंजर

आपाधापी की चिल्ल-पों में गुम है स्वामी हरिदास का अनहद नाद

‘निधिवन’ में खैनी गटकते लालची केसरिया दुपट्टों

और उद्धत बंदरों का एकछत्र साम्राज्य है

द्वापर युग की गायें कलियुग में कबसे लावारिस दर-दर भटक रही हैं

उद्ध्वस्त ‘धरमशालाओं’ के प्रवेशद्वारों पर

गिर जाने को हैं पत्थर के कमनीय कमल लताएँ और अंगूर

कादा-कीचड़ के बीच जाने कब से बनाए जा रहे हैं स्वादिष्ट पेड़े और खीरमोहन

सड़ती हुई गलियों में शानदार रबड़ी और खुरचन

खौलाए जा रहे हैं केसरी दूध काले कढ़ावों में

पार्श्व में गूँजती मृदंग के बीच रमणरेती की दुकान पर

मलमल की रामनामी साड़ी में लिपटी कृष्ण की खोज में आई

सेनफ्रांसिस्को की सुंदरी मार्था एंडरसन ख़रीद रही है ‘व्हिस्पर’

शत-प्रतिशत हिंदुस्तानी सेनिटरी नैपकिन

भरपेट भोजन से पहले भाँग का भारी गोला गटक कर मुस्टंडा

पंडा खाट पर पर पड़े-पड़े

लगा रहा है हाँक : राऽऽधे-राधेऽऽ

पतली टाँगों वाले बृजवासी रिक्शा वाले पर लदी-फँदी

‘हरियाने’ और दिल्ली की सेठानियाँ ठसाठस

अपने ही वज़न से हाँफती नज़र आती हैं ‘बाँके बिहारी’ की गली में

एक पुरानी नदी के किनारे पुराने मंदिर पुराने शिखर उड़ती हुई पुरानी ध्वजाएँ

पुराने तीर्थ बहुत पुरानी आस्थाएँ बहुत पुराने घाट पुराने घर पुराने धाम

पुरानी भाषा पुराने भेस बहुत पुरानी सीढ़ियाँ बहुत पुराने पानी

हर चीज़ इत्ती पौराणिक कि अविश्वसनीय

वृंदावन की पौराणिक आकाश-रेखा पर

अभी-अभी एकाएक उग आए अविश्वसनीय

महंगे अपार्टमेंट और बहुमंज़िला फ़्लैट्स

मेरी आत्मा की आँख में धँस गई

किसी फाँस की तरह नए हैं...

स्रोत :
  • रचनाकार : हेमंत शेष
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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