किसी सलीब पर देखा है मुझको बोलो तो
एक
आधी रात बाक़ी है जैसे आधी उम्र बाक़ी है
आधा क़र्ज़ बाक़ी है आधी नौकरी आधी उम्मीदें अभी बाक़ी हैं
पता नहीं आधा भी बचा है कि नहीं जीवन
अब भी अधूरे मन से लौट आता हूँ रोज़ शाम
रोज़ सुबह जाता हूँ तो अधूरे मन से ही
जो अधूरा है उसे पूरा कहके ख़ुश होने का हुनर बाक़ी है अभी
अधूरे नाम से पुकारता हूँ जिसे प्यार का नाम समझता है वह उसे!
एक अधूरे तानाशाह के फ़रमानों के आगे झुकता हूँ आधा
एक अधूरे प्रेम में डूबता हूँ कमर तक
दो
वह जो चल रहा है मेरे क़दमों से मैं नहीं हूँ
हवा में धूल की तरह चला आया कोई
कोई पानी में चला आया मीन की तरह
कोई सब्ज़ियों में हरे कीट की तरह
और इस तरह बना एक जीवन भरा-पूरा
पाँचो तत्व सो रहे हैं जब गहरी नींद में
तो जो गिन रहा है सड़कों पर हरे पेड़
वह मैं नहीं हूँ
तीन
इतनी ऊँची कहाँ है मेरी आवाज़
एक कमज़ोर आदमी देर तक घूरता है कोई तो डर जाता हूँ
कोई लाठी पटकता है जोर से तो अपनी पीठ सहलाता हूँ
शराबियों तक से बच के निकलता हूँ
कोई प्रेम से देखे तो सोचते हुए भूल जाता हूँ मुस्कुराना
दफ़्तर में मंदिर की तरह जाता हूँ
मंदिर में दफ़्तर की तरह
अभी-अभी जो सुनी मेरी आवाज़ आपने और भयभीत हुए
वह मेरे भय की आवाज़ है बंदानवाज़
चार
कौन करता मेरा ज़िक्र?
मैं इस देश का एक अदना-सा वोटर
एक नीला निशान मेरा हासिल है
मैं इतिहास में दर्ज होने की इच्छाओं के साथ जी तो सकता हूँ
मरना मुझे परिवार के शज़रे में शामिल रहने की इच्छा के साथ ही है
किसी ने कहा प्रेम तो मैंने परिवार सुना
किसी ने क्रांति कहा तो नौकरी सुना मैंने
मैंने हर बार बोलने से पहले सोचा देर तक
और बोलने के बाद शर्मिंदा हुआ
मैंने मोमबत्तियाँ जलाईं, तालियाँ बजाईं
गया जुलूस में जंतर-मंतर गया कुर्सियाँ कम पड़ीं तो खड़ा रहा सबसे पीछे हॉल में
और रात होने से पहले घर लौट आया
वह जो अख़बार के पन्ने में भीड़ थी
जो अधूरा-सा चित्र उसमें वह मेरा है
सिर्फ़ इतने के लिए भी चाय पिला सकता हूँ आपको
क़मीज़ साफ़ होती तो सिगरेट के लिए भी पूछता
रुकिए, लिख तो दूँ कि धूम्रपान हानिकारक है स्वास्थ्य के लिए।
- रचनाकार : अशोक कुमार पांडेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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