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वहाँ एक नदी बहती थी

vahan ek nadi bahti thi

सौम्या सुमन

सौम्या सुमन

वहाँ एक नदी बहती थी

सौम्या सुमन

और अधिकसौम्या सुमन

    शहर के बीचों-बीच

    एक नदी बहती थी

    मुझे याद है छोटा-सा शहर था वह

    और बहुत बड़ी थी नदी...विशाल, गहरी

    हम नदी के पास बैठते चुपचाप

    प्रेम में आकंठ डूबे

    नदी की गीली पीठ पर लिखते

    एक-दूसरे का नाम

    नदी हममें गाती

    और हम

    भीगते रहते थे

    हम भीगते थे उसके आकाश,

    हरी पहाड़ियों, पेड़ों के प्रतिबिंब वाले

    नीले-हरे जल में

    अतिशय प्रेम में

    ईर्ष्या कौंधती कभी

    कई बार हमारे झगड़े होते

    कई बार हम

    एक-दूसरे को धिक्कारते, कोसते

    कई-कई बार टूटते हम

    पर

    नदी ठहरी रही थी भीतर

    सुनती रही थी चुपचाप

    हमारे अनर्गल प्रलाप

    प्रेम से भरी उदासियों को

    जब भी आवारा छोड़ा हमने

    नदी उसे आत्मसात करती

    हमें छूटने और डूबने से

    बचाती रही

    धीरे-धीरे

    शहर बड़ा होता गया

    बड़ा...बहुत बड़ा

    तब सिकुड़ने लगी थी नदी

    संकुचित ऐसी कि

    टकराने लगीं थीं मछलियाँ

    आपस में

    अब नदी से गीत नहीं

    मछलियों का कोहराम सुनाई देता

    गोया नदी भूल चुकी हो गाना

    नदी; अब नदी नही थी

    पता चला लौटना चाहती थी

    और

    एक दिन नदी ने

    स्वयं घोषणा की

    अपने ख़ाली होने की

    मानो

    उसके नदी बने होने का अनुबंध

    हो चुका था समाप्त

    अब नदी, नदी नही रह गई थी

    कोई लहर, कोई गीत नहीं,

    हमारे लिए हादसा था यह

    और

    शहर के लिए

    यह एक ख़तरनाक घटना थी

    हम एक-दूसरे से कतरा कर

    निकल चुके थे बहुत दूर

    विन्यस्त प्रेम, पीड़ाएँ, शिकायतें, घृणा

    सर्वस्व विसर्जित कर चुके थे हम

    और हमसे बहुत दूर जा चुकी थी नदी

    अब लोग

    नदी नहीं

    शहर के बारे में

    मछलियों के बारे में

    सोच रहे थे

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्या सुमन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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