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उत्तर-कोरोना : आत्माएँ होंगी, आत्मीयता न होगी!

uttar korona ha atmayen hongi, atmiyata na hogi!

श्रीप्रकाश शुक्ल

श्रीप्रकाश शुक्ल

उत्तर-कोरोना : आत्माएँ होंगी, आत्मीयता न होगी!

श्रीप्रकाश शुक्ल

और अधिकश्रीप्रकाश शुक्ल

    मैंने तुम्हें फ़ोन किया और तुम मुझसे उत्तर माँग रहे हो

    समय सुबह का है

    सूरज की चमक थोड़ी गाढ़ी हुई ही थी

    कि नदियों के स्वच्छ होते जल और

    वातावरण में बढ़ती हुई ऑक्सीजन के बीच

    आसमान में निचाट सन्नाटा है

    और तुम कहते हो

    यह उत्तर-कोरोना तो नहीं है!

    कितना विकट समय है कि जब दुनिया का सारा विज्ञान

    एक रोएँ के हज़ारवें भाग से भी छोटे वायरस की काट नहीं खोज पा रहा है

    लगभग एक ब्रह्म की सूक्ष्म सत्ता की तरह वह इधर-उधर छिटक रहा है

    अपने स्वरूप को लगातार बदलता हुआ हर क्षण धरती का ख़ून पी रहा है

    तुम मुझसे उत्तर की अपेक्षा कर रहे हो

    अब जबकि वर्तमान से बाहर आने की उम्मीद कम ही बची है

    चिड़ियों की बढ़ती चहचहाहट के बीच

    दुनिया के सारे देवता असहाय और असुरक्षित हो गए हैं

    अल्लाह, ईसा, मूसा और ईश्वर

    सबके सब मुँह बाँधकर अपने-अपने कमरे में क़ैद हैं

    और पुतलियों की जाती हुई गति से दुनिया को आते हुए देख रहे हैं

    तुम कोरोना के उत्तर से उत्तर कोरोना की बात क्यों कर रहे हो

    क्या तुम जानते हो

    यह आस्थाओं के फड़फड़ाने का दौर है

    जिसमें संत कवियों की एक बार फिर से वापसी हो रही है

    जब उन्होंने कहा था कि इस जगत में एक ही ब्रह्म की सत्ता है

    बाक़ी सब मिथ्या है!

    ठीक इसी जगह पर दुनिया बदल रही है

    और बदलते हुए कोरोना के चरित्र में

    ख़ुद के लिए एक उत्तर खोज रही है

    शायद उत्तर कोरोना का उत्तर—

    जहाँ अभिव्यक्तियाँ होंगी

    लेकिन आस्वाद होगा

    लोग लौट रहे होंगे

    लेकिन लौटने के लिए कुछ होगा

    आत्माएँ होंगी आत्मीयता होगी

    एक देह होगी जिसको एक आत्मा ढो रही होगी

    यह चिंताओं और शंकाओं के संघर्ष का दौर होगा

    जिसमें हर कुछ एक भय की तरह समर्पित होगा

    जहाँ स्वीकारने के अलावा और कुछ होगा

    और संघर्ष के मोर्चे पर हर बार विवेक ही मारा जाएगा

    आदतें कुछ ऐसी होंगी

    एक ख़ास जंग के जैसी होंगी

    जीवन निर्वात होगा

    संघर्ष हवाओं का होगा

    सत्ताएँ उदार होंगी

    शासन सख़्त होगा

    देश का हर आदमी लड़ेगा सिपाही की तरह

    लेकिन हर बार मारा जाएगा एक नागरिक के मोर्चे पर

    शासक बहुत उदार होंगे

    लेकिन उनमें सब कुछ को पाने की एक जल्दी होगी

    लगभग इस समय के वाचाल मीडिया की तरह

    जहाँ ब्रेक के बाद भी

    एक पुराना ही चीख़ता है

    अद्भुत होगा यह समय कि अद्भुत जैसा कुछ नहीं होगा

    केवल एक पुरातन की स्मृति होगी

    और सभ्यता के एक वायरल इफ़ेक्ट जैसा

    खोने और पाने का संघर्ष होगा

    हर नए विकल्प को अनचाही आस्थाओं का आदिम स्वर देता हुआ

    यह असहाय कथाओं के सर्जन का समय होगा

    जिसमें कथाएँ तो बहुत होंगी

    काव्यत्व उतना ही कम होगा

    स्मृति में मनोरंजन की सुविधाएँ होंगी

    आकांक्षा में ढेर सारी दुविधाओं के बीच

    यह एक दूसरे की तारीफ़ का दौर होगा

    जिसमें सराहनाएँ भी शातिर होंगी

    जहाँ एक ताक़त दूसरे को आज़मा रही होगी

    खोए हुए को पाने की ज़िद में

    दुनिया दौड़ रही होगी

    जिसकी ज़द में आई हुई सभ्यता

    अपनी संपूर्णता में कराह रही होगी

    यह एक नई शुरुआत होगी

    लेकिन शुरू करने के लिए कोई होगा

    क्या तुम जानते हो

    वायरस का कोई पूर्व-काल नहीं होता

    उसका सिर्फ़ एक वर्तमान होता है

    जो सदा एक उत्तर में बदल रहा होता है

    यह विचार नहीं

    व्यवहार समझता है

    और तुम्हारा व्यवहार है कि

    इसकी आकंठ उलाहनाओं के बीच

    पूँजी की ताक़त के सामने सदा झुका रहता है

    एक स्थायी विनम्रता की तरह!

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीप्रकाश शुक्ल
    • प्रकाशन : पहली बार

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