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उतना-उतना

utna utna

केशव

केशव

उतना-उतना

केशव

और अधिककेशव

    आदमी

    प्यार कर सकता है

    जितना-जितना

    जी सकता है

    उतना-उतना

    विष पी सकता है उतना

    जितना अमृत में नहीं

    उसका हिस्सा

    जिस तरह हवा भरती है

    खोखल में

    उसी तरह प्यार भरता है

    मुझमें

    और शायद उन सबमें भी

    जिनके जीवन में नहीं है

    कोई दरख़्त।

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरती होने का सुख (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : केशव
    • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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