वो जो हाथ में लिए पत्थर
दुनिया को ललकार रहा है
उसकी शक्ल
मुझसे मिलती है
मैं कहूँ कि आपसे भी मिलती है
हर उस एक से मिलती है
जो उसके निशाने पर है
थोड़ा ठहरकर सोचिए
कि आप ही की शक्ल का आदमी
आप ही के ख़िलाफ़ क्यों है
आप जो सभी चीज़ों को
एक ही साँचे में देखने के अभ्यस्त हो गए हैं
एक ही पटरी पर दौड़ते जा रहे हैं
एक ही किताब सदियों से पढ़ रहे हैं
एक ही तरह का जीवन जी रहे हैं
आप जो कि जीते हुए
हमेशा यही चाहते हैं
कि सभी को इसी तरह जीना चाहिए
हर हिसाब में
आपकी तरह होना चाहिए
न इक आना कम, न इक आना ज़्यादा
वो जो पत्थर लिए
आपके ख़िलाफ़ है
उसके पैरों की माप
आपकी दुनिया से ज़्यादा बड़ी है
उसके दिमाग़ का वज़न
बहुत-बहुत अधिक है
आपके-हमारे दिमाग़ से
उसका हृदय
सभी दीवारों को ढहाकर
अथाह में डूब गया है
उसने दुनिया की किताबों के साथ ही
दुनियावी किताब का ठीक-ठीक पाठ किया है
वो जान गया है
जीने का असल तरीक़ा
प्यार के सही मायने
उसे नफ़रत हो रही है
आपकी-हमारी बँटी हुई शक्लों से
जबकि वो जान गया है
कि मनुष्यता का रंग
मिट्टी, पानी, हवा के रंग से
तनिक भी जुदा नहीं
वो जान गया है
कि बच्चे की हँसी से
ज़्यादा पवित्र कुछ भी नहीं
आप ध्यान से देखिए
उसके निशाने पर
न तो बच्चे हैं
न ही प्यार में नहाए हुए लोग
और खिले हुए फूल तो
बिल्कुल भी नहीं हैं
उसके निशाने पर
उसने अपनी जेबों में
रखे हैं तरह-तरह के फल
जो उसे ग़ुस्सैल के साथ ही
बेइंतिहा प्रेमिल बना रहा
आपकी-हमारी भाषा से
विलग है उसकी भाषा
उसने किसी तराज़ू में तौलकर
कभी शब्दों को नहीं रखा है
आपके-हमारे समक्ष
वह बोलता अधिक है
क्योंकि उसे मालूम है
आपकी-हमारी सदी ख़ामोश है बहुत
एकदम चुप्पा
हद दर्जे का घुन्ना
यह काम सलीक़े से
सिर्फ़ और सिर्फ़ वही कर सकता है
वो जानता है
उसके लिए आपके पास वही नाम है
जिसे आप इतिहास से
हमेशा उधार लेते हैं...
- रचनाकार : लक्ष्मण गुप्त
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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