उसे मैंने उत्सव की तरह जिया
use mainne utsaw ki tarah jiya
मेरे पास मुस्कुराने की वजहें थीं
जबकि मुझे लोग रोता अधिक देखना चाहते हैं
वह जी भर उलाहनें, ताने और लानतें भेजते हैं
मुझे जीना बिल्कुल नहीं चाहिए
क्योंकि मेरे हाथ में न भाग्य की रेखा है
न धनकोठरी है और नहीं
नौकरी और विद्या की रेखा है
मुझे मर जाना चाहिए था जिन कारणों से
उसे मैंने उत्सव की तरह जिया
मैंने वह सब कुछ पढ़ा
जिसे नहीं पढ़ना चाहिए था
वह सब कुछ कर लेना चाहती हूँ
जिसे नहीं करना था
मैं उफनती रही तसले में खौलते पानी की तरह
गिराती रही मुँह पर रखा ढक्कन
अक्सर पत्थर के टुकड़े-सा तड़पता रोड़ा रखा गया
मुँह के तसले पर भाप के दबाव को रोकने के लिए
गीली लकड़ियों संग जलाया गया मन के भावों को
उसे केवल सुलगना था,
धधकने की मनाही थी इस क़दर कि
भाव खुलते जल जाना था सब कुछ
मुझे जितना बंद किया गया
उतना खुलती गई
खुलना मेरा गुनाह था और एक दिन मुनादी हुई—
खुली हुई औरतें बेहया होती हैं!
- रचनाकार : सोनी पांडेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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