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उपहार

uphaar

अनुवाद : हनुमच्छास्त्री अयाचित

पिंगलि काटूरी

और अधिकपिंगलि काटूरी

    विकसित होने से पूर्व कुछ नन्हीं-नन्हीं कलियाँ चुनकर

    तोड़ लिया ऐसे मैंने अर्धविकसित पुष्पों को लेकर।

    जाने कब से यह सुंदर हार बनाना आरंभ किया

    कितने यत्नों से फूलों को चुनकर अपने हाथ लिया

    फिर भी ये प्रसून धरा के किन-किन धूलिकणों में लीन

    होकर खो बैठे निज तत्त्व, नियति नटी के चरणाधीन॥

    आज मेरे कर में यह प्रेमिल एक मात्र लतांत आया

    इसे पुनः लेकर हार अभी गूँथूँगा मैं मन भाया॥

    तुम्हें भेट करने के मिस मैं गुणसूत्र में, हे प्रियवर!

    धीरे-धीरे गूँथ रहा था, मधु सुमनों को चुन-चुनकर

    पूर्व-पूर्व में गुँथे हुए फूलों के यों जाने से झड़

    माला का आरंभ है कहाँ, पता नहीं चलता है झट॥

    कोई बात नहीं यदि ऐसे झड़ जाते हैं फूल यहाँ,

    आदि अंत में लगे सूत्र को ग्रहण कर ले चलूँ वहाँ,

    पुष्पविहीन माला लेकर होने दो जीवन क्रियमाण

    कम से कम मिल ही जाएगा मेरे यत्नों का प्रमाण॥

    उपवन-दाता वह मेरे प्रिय, नवमंमथाकार सुकुमार।

    कैसे दिया जा सकता—उसको पुष्प शून्य सूत्र उपहार?

    अवांछित अरसिक कोई जन ही कर पाएगा यह कार्य,

    मैं तो सहृदय रहा, नहीं कर सकता अनुचित कार्य अनार्य॥

    हर बिरवा हर लता-बेल का बनकर सुंदर बंदनवार,

    लगा प्रतीक्षा में, कौतुक से गूँथ रहा पुष्पों के हार

    पुष्पमालिका में रूपांतरित करने को सारा जीवन

    छोड़ सका अपने यत्न, हा! मैं बना तरुवर या बेल!

    नयनों के हित मधुर चाँदनी जैसी प्रतिमा लख कर,

    सुधा प्रपूरित मधुर ऋजु वाणी सुनकर

    जिस दिन प्रेमालाप हेतु योग मिलेगा

    झुक कर वक्षःस्थल पर तेरे गले में प्रियवर!

    नवल पुष्पमाला सा शोभित हूँगा आकर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक तेलुगु कविता (प्रथम भाग)
    • रचनाकार : पिंगलि-काटूरी (कविद्वय)
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश साहित्य अकादमी
    • संस्करण : 1969

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