उम्मीद हमारा पासवर्ड है
ummid hamara paswarD hai
यह मेरा अपना घर है
अपनी पृथिवी
जहाँ किसी भी सफ़र से आकर
मैं ख़ुद को सुकूनदेह पाता हूँ
भींड में थोड़ा-सा अपने को बचाए रखना चाहता हूँ
बढ़ती हुई पाशविकता के समय में
बचाना चाहता हूँ अपने अंदर थोड़ी-सी इंसानियत
कि जब हमारा दुश्मन बन गया मित्र हमसे बेइंतिहा घृणा करने लगे
तो हम इसे उसकी नादानी मानकर उसे प्यार करने का जज़्बा जुटा सकें
हमारी भूख बिल्कुल हमारी भूख है
हमारी प्यास के संकेत बिल्कुल अनूठे हैं
और इसके पहले कि देह की आख़िरी कोशिका बग़ावत कर दे
मुझे वह सारा इंतज़ाम करना है
जिससे मैं अगली भूख-प्यास के लिए ख़ुद को तैयार कर सकूँ
चिर-परिचित घर के अपने कोने-अंतरे से परिचित हूँ
आँख मूँदकर आ जा सकता हूँ कहीं भी इसमें
ताखे से उठा सकता हूँ माचिस
हमारे संबंध कुछ ऐसे ही होते हैं
जिसमें हर मुस्कान का राज़ हमें पता होता है
हर उदासी हमें उस तरफ़ ले जाती है
जहाँ से दुनिया के ग़म को महसूस किया जा सकता है
यह हमारा पासवर्ड है जिससे मैं ही अकेला परिचित हूँ इस दुनिया में
इसमें थोड़ा-सा मेरा चेहरा है और थोड़ा-सा मेरा मन
मैं नहीं चाहता कि बाज़ार इसमें सेंध लगा पाए कहीं
मैं नहीं चाहता कि क्रूरता हमारे रग-रग में समा जाए
मैं नहीं चाहता कि अकेलापन इतना बढ़ जाए
कि सुन ही न सकें हम ख़ुद की आवाज़ तलक
इसमें कुछ पुरातन अक्षरों की ख़ुशबू बची है
कुछ नव्यतम अंकों की आत्माएँ हैं इसमें
जीवन के लिए ज़रूरी बन गए कुछ जोड़-घटाव इसमें अपने-आप ही जुड़ गए हैं
कहीं-कहीं इसमें मुस्कुराहटें हैं कहीं-कहीं अपनों के लिए रुदन
कहीं पलकों पर सजे वे सपने जो आज भी ज़िंदा हैं आँखों में
यानी यह एक कोरस है
जिसमें तमाम स्त्री-पुरुष आवाज़ें अपने अस्तित्व के साथ शामिल हैं
इसमें पशुओं, पक्षियों, कीड़ों, मकोड़ों की विविधवर्णी बोलियाँ हैं
इसमें तमाम देशों-प्रदेशों की पहचान बन गई फूलों-फलों-पत्तियों का सत्त है
तमाम रिश्तों ने इन सबको इस तरह जोड़ रखा है कि
दूसरे के लिए अबूझ पहेली जैसा लगेगा यह
इसे हमने तमाम धूप, ठंड और बारिश को झेलकर तैयार किया है
तमाम आफ़त विपत में भी बचाकर रखना चाहता हूँ मैं इसे बीज की तरह
ज़मीन से कटे लोग नहीं बूझ पाएँगे हमारे इस पासवर्ड को
जैसे वे नहीं समझ पाए कभी हमारी भावनाओं को
जैसे वे नहीं समझ पाए कभी हमारी दिक़्क़तों को
तो जो जहाँ जिस ज़मीन, जल या हवा का वास्तविक हक़दार है
मैं रखता हूँ उन सबको ससम्मान उनकी जगहों पर
और बंद पड़ा दरवाज़ा खुल जाता है सिमसिम की तरह
मैं फूल के पास जाता हूँ उसके रंग बनकर
मैं फ़सल के पास जाता हूँ उसका अनाज बनकर
बीज के पास जाता हूँ उसका अंकुर बनकर
अगवानी करती है उषा अपने हर सुबह की पूरे उल्लास से
साँझ आज भी हर रोज़ अपनी रात के लिए रास्ता बुहारती है
इस घर में आज भी एक आँगन है
जिसमें बचा हुआ है आसमान
और आसमान में बचे हुए हैं तारे
जो धुँध की तासीर को धुँधला कर
उतर आते हैं हमारी आँखों में
बस जाते हैं हमारे सपनों में
इस घर के दरवाज़े आज भी एक रास्ते की तरफ़ खुलते हैं
मुझे पक्का भरोसा है
वे नहीं कर पाएँगे मुखरित मेरी आवाज़ जैसी आवाज़
वे नहीं तैयार कर पाएँगे लाख कोशिशों के बावजूद मेरे चेहरे जैसा चेहरा
इस तरह वे कभी भी नहीं बना पाएँगे बिल्कुल हमारे जैसा ही हमारा कोई पासवर्ड
जो बिल्कुल हमारा अपना है
जिसकी भंगिमा बिल्कुल अपनी है
जिसका अंदाज़ बिल्कुल अलग है
तो जब तक बचा हुआ है आदमी के पास इंसानियत का पासवर्ड
तब तक इस सृष्टि के लिए भी कोई ख़तरा नहीं
कोई नक़लची इसकी अनुकृति नहीं बना सकता
क्योंकि इसके घुट्ठे पर पड़े निशान
सदियों तक चलते रहने के हैं
क्योंकि इसके हाथों में उभर आए ठेले
परिश्रम की अनूठी दुर्लभ पांडुलिपियाँ हैं
इसकी नक़ल सहज ही संभव नहीं
अनुभव की नक़ल नहीं उतारी जा सकती कभी
इसके लिए समय के गली कूचों से गुज़रना ही पड़ेगा हर किसी को
ख़तरे जैसा कोई ख़तरा ही नहीं हमारे पासवर्ड के लिए
जब तमाम चैनलों के सनसनीख़ेज़ अंदाज़ में लगातार मुनादी करते जा रहे हों
कि ख़त्म हो जाएगी अपनी यह समूची धरती
ख़त्म हो जाएगा यह जीवन कल दुपहर को ठीक बारह बजे
तब भी नहीं
ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों को धत्ता बताते हुए
हम चलते रहेंगे नदियों की धाराओं के साथ-साथ युगों-युगों तक
विनाश के हैकरों को अँगूठा दिखाते हुए
धरती जैसे ख़ूबसूरत से अपने घर को
किसी भी अनहोनी से बचाते हुए
मूसलाधार बारिश की टपकन मुसीबतों से बचने के लिए
आसमान की खपरैल को छाते हुए
नरिया को बिल्कुल उसकी जगह पर जमाते हुए
हम चलते रहेंगे जीवन के इस छोर से उस छोर तलक
क्योंकि उम्मीद हमारा पासवर्ड है
- रचनाकार : संतोष कुमार चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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