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उगे हो सकने की संभावना का प्रस्थान बिंदु...

uge ho sakne ki sambhavna ka prasthan bindu. . .

श्रीधर करुणानिधि

श्रीधर करुणानिधि

उगे हो सकने की संभावना का प्रस्थान बिंदु...

श्रीधर करुणानिधि

और अधिकश्रीधर करुणानिधि

    किसी सड़क पर कोई कविता उगी हो सकती है

    यह सरल वाक्य में एक कल्पना है

    और आशावादी वक्तव्य भी

    लेकिन...

    ना उम्मीदी के बावजूद मैं फिर से

    ये वाक्य दोहराता हूँ

    उग तो सकती है कहीं भी

    यह उर्वरता का सिद्धाँत कहता है

    कि ज़मीन पर सही तो पत्थरों के बीच में

    किसी भी दरार में

    यहाँ तक कि जंग लगे तालों के छेद में

    जहाँ चाबी लगती है

    कोई अगर जगह बचे तो मन के अँधेरे कोने में भी

    एक उजाले की आहट की तरह...

    लेकिन नहीं

    नहीं उगेगी वह इस बार

    मैं इंतज़ार करता रहूँगा

    किताबों की इतनी बड़ी दुनिया में

    इंतज़ार बहुत छोटा शब्द है

    यह जानते हुए भी मैं इंतज़ार करता रहूँगा कि वो उगे

    कहीं भी

    सड़क पर ही सही

    लेकिन यह भय है कि

    रफ़्तार से यह दुनिया जब इतनी छोटी हो गई है

    कि कोई भी वाकया कहीं भी हो सकता है

    तब यह भी हो सकता है

    कि बीच सड़क पर

    कोई उसे पागल समझ पीट-पीटकर मार डाले

    किसी लक्जरी कार को छूने के अपराध में

    गाड़ी वाला अपनी पिस्टल से

    उसे निशाना बनाकर निकल जाए

    कोई भी उस शोर से पागल हो सकता है

    वह भी कहीं पागल होकर

    सड़क किनारे काले कंबल में एक लाश की तरह

    पड़ी हो सकती है

    मेरे इंतज़ार से गा़फ़िल

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीधर करुणानिधि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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