तुम्हीं से पाया होगा अर्थ सुंदरता ने
tumhin se paya hoga arth sundarta ne
महेश चंद्र पुनेठा
Mahesh Chandra Punetha
तुम्हीं से पाया होगा अर्थ सुंदरता ने
tumhin se paya hoga arth sundarta ne
Mahesh Chandra Punetha
महेश चंद्र पुनेठा
और अधिकमहेश चंद्र पुनेठा
काम के बोझ
और सारे कष्टों के बीच भी
हँसते हुए
बाँटती रहती हो दूसरों को हँसी
तवे में फूलती रोटी-सी
धुँधला चुकी चीज़ों में भी
लौटा लाती हो फिर से चमक
जैसे लोक के शब्दों के प्रयोग से
भाषा और कविता में कोई कवि
किसी रूठे हुए को
हँस-हँसकर मना लेती हो
जैसे गई रात तेज़ हवा से
भू लुंठित हो चुकी मक्के की फ़सल को
सविता की किरणें
टूटी हुई चीज़ों को जोड-जोड़कर
फिर बना लेती हो काम की
किसी कुशल शिल्पी की तरह
ढेर सारी बिखरी हुई चीज़ों को
सज़ा लेती हो
थोड़ी-सी जगह में
जैसे सब्ज़ीवाला ढेर सारी सब्ज़ियों को
छोटे से ठेले में।
मुझे लगता है
हो न हो इन सभी को
मिले होंगे ये हुनर
पहले-पहल
तुम्हीं से पाया होगा अर्थ सुंदरता ने।
- रचनाकार : महेश चंद्र पुनेठा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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