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तुम्हें लौट आना चाहिए

tumhein laut aana chahiye

गौरव सिंह

गौरव सिंह

तुम्हें लौट आना चाहिए

गौरव सिंह

और अधिकगौरव सिंह

    प्रेम में

    कई बार धोखा खाई एक लड़की

    हॉस्टल की बालकनी से झाँकते हुए

    रोज़ हमारी अक्खड़ उपस्थिति को निहारती थी

    व्यवस्था की

    विसंगतियों से युद्धरत एक लड़का

    तुमको मेरे कमज़ोर कंधों पर लदकर

    आधी रात में सड़कों पर खेलते देखता था

    भूख से

    रोज़ जंग लड़ती एक गिलहरी

    ढाबे पर हम दोनों के साथ-साथ

    कॉफ़ी और पराठे का इंतज़ार करती थी

    जीवन का

    एक बहुत बड़ा हिस्सा

    एक-दूसरे के साथ गुज़ार चुका एक वृद्ध युगल

    हमें साथ देख मुस्कुराते हुए अपने अतीत में लौटा था

    अब जब तुम यहाँ नहीं हो

    मैं हर जगह अकेले जाता हूँ

    और मुझे इनकी सवाल पूछती आँखें चुभती हैं

    मैंने हरेक को तुम्हारे आने का आश्वासन दे दिया है

    यक़ीन मानो

    अब बहुत देर हो रही है

    इंतज़ार करती आँखें तक़ाज़ा करने लगी हैं

    मैं और अधिक दिनों तक इनको टाल नहीं सकता

    इस दुनिया में

    बची हर सुंदरता का उधार है हम पर

    और हर उम्मीद के प्रति हमारी जवाबदेही

    चिड़ियों की आँख में आँसू अच्छे नहीं होते

    मैंने सबसे मशवरा किया है

    एक बूढ़ी चट्टान ने कहा है

    और मेरा भी यही मानना है :

    तुमको लौट आना चाहिए…

    स्रोत :
    • रचनाकार : गौरव सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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