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तुम नहीं होते

tum nahin hote

सपना भट्ट

सपना भट्ट

तुम नहीं होते

सपना भट्ट

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    गहन मौन में भी

    एक अनकहे संगीत का अनुनाद

    धमनियों में बहता है

    तुम्हें पुकारना

    उसी अनहद नाद को छू लेने की अदम्य चाह है

    किसी उदास शाम में

    पुराने सितार की तार से

    ज़ख़्मी हो जाती हैं उँगलियाँ

    सुरों से भी मन पर चोट लगती है

    अँधेरे पर भी रोशनी का दाग़ लगता है

    तुम नहीं होते

    तुम्हारे होने की कमी होती है

    एक आदिम शून्यता मे अपनी उपस्थिति दर्ज कराती

    तुम नहीं होते

    तुम्हारे स्पर्श को तरसता एक लंबा

    सिसकता अंतराल होता है

    प्रतीक्षा होती है, प्यास होती है, याद होती है

    तुम नहीं होते...

    स्रोत :
    • रचनाकार : सपना भट्ट
    • प्रकाशन : इबारत वेब पत्रिका

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