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तुम मुझे शब्द दो

tum mujhe shabd do

अनुवाद : दिनेश कुमार माली

सीताकांत महापात्र

सीताकांत महापात्र

तुम मुझे शब्द दो

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    तुम मुझे शब्द दो

    मैं तुम्हें नीरवता दूँगा

    दीक्षा गुरु बनकर, शाँत बैठने का

    मंत्र सिखाऊँगा!

    तुम मुझे शब्द दो

    बच्चों के खेल में लोगों

    या रंगीन ब्लॉक की तरह

    मैं उन्हें ढंग से सजाऊँगा

    आर्किटेक्ट हूँ मैं

    सारे शब्द मेरी गणना की गोटियाँ

    अनायास ही आत्मा का बखान!

    तुम मुझे शब्द दो, अक्षय वह बीज

    उस बीज को मैं रोपूँगा

    तपती धूप में, प्यासे मरु प्रांत में

    मेरी सारी श्रद्धा और आनंद

    सारी भावना और विषाद

    अभिमंत्रित जल की तरह छींट दूँगा

    उस सूखी मिट्टी पर

    देखना बीज कैसे अंकुरित होगा

    सूरज की तरफ़ देखते, संपूर्ण नीरवता में

    खिल उठेंगी दो नव कोपलें

    उसके लिए तैयार हो जाओ खुली रखो आँखें

    पागल की तरह दौड़-भाग बंद करके

    ज़रा बैठो उस अमृत बेला के इंतज़ार में

    ज़्यादा देर नहीं है

    खुले रखो कान

    प्रणव ओंकार की तरह

    उन नवजातकों के कोमल स्वर

    तुम मुझे शब्द दो

    मैं तुम्हें नीरवता दूँगा

    कुछ भी कहकर सब कुछ कह देने का

    मंत्र सिखा दूँगा

    तुम मुझे शब्द दो!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : ओडिया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 166)
    • रचनाकार : सीताकांत महापात्र
    • प्रकाशन : यश पब्लिकेशंस
    • संस्करण : 2012

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