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तुम आना

tum aana

पवन चौहान

पवन चौहान

तुम आना

पवन चौहान

और अधिकपवन चौहान

    अपनी इस चाहत में तुम

    तोड़ सकते हो अपने सारे उसूल

    जो शायद रहे ही होंगे कभी

    छीन सकते हो

    किसी के सपने तक

    अपनी मोहवाणी के जाल में

    फाँस सकते हो

    चुरा सकते हो संवेदनाओं को

    बिना किसी आह के

    तुम सरल को बहुत मुश्किल बना

    अपने ओहदों के लिए

    कर सकते हो कुछ भी

    यक़ीनन!

    अपनी इस अँधी चाहत में लेकिन

    एक ख़्याल रखना

    किसान को बीजने देना खेत

    ग़रीब को भरपेट खाने देना।

    अपनी असीमित चाहतों में

    ले मत जाना किसी की ख़ुशियाँ

    चुरा लेना बच्चों की मासूमियत

    अपनों का प्यार

    किसी समाज की स्थिरता।

    तुम आना हम सबके बीच

    जनसेवा के झूठे वादों और

    अपनी क्रूर चाहतों को कहीं

    किसी ब्लैक होल में छोड़कर ही

    यह चेतावनी है हुज़ूर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पवन चौहान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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