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तुकाराम

tukaram

यतींद्र मिश्र

और अधिकयतींद्र मिश्र

    लगभग गैरज़रूरी-सी लगती हुई

    इस दुनिया की सुघड़ गुंजाइश में एक व्यक्ति

    अपने समय की अकथ कथा लिखता है

    वहीं भाषा के अरण्य में पत्ते की तरह

    टूटकर गिरता एक शब्द-शूद्र

    इसे सीधे मंदिर तक ले जाने में काँपती है आस्था

    ब्राह्मण भक्तों की टोली दिखती उलझी हुई और अधीर

    फिर भी, दुस्साध्य कला तप की अभंग शब्दावली में

    विस्तृत होती रहती एक अनूठी अनात्म दुनिया

    पुनर्नवा होती जाती एक शूद्र की वैष्णव भक्ति

    जैसे तानपूरे की जवारी खुलती है

    जैसे कोई विचार अपना शरणालय खोजता है

    समाज फिर भी भयभीत-सा अपनी जगह अड़ा

    देख नहीं पाता एक साधारण भाषा का सुंदर स्थापत्य

    सच के परदे से निकला एक अकल्पनीय सच

    और इस पूरी प्रक्रिया में जिस तरह एकाएक

    हमारे सामने तुकाराम की कविता आकर खड़ी होती

    हम भूल चुके होते हैं तब तक

    कि शब्दों उसके असीम अर्थों से परे

    समय ने रच दिया है मोहभंगों का अर्जित एकांत

    उस एकांत में कथा के पन्नों से झाँकता एक बड़ा सूराख़

    उसमें एक निर्मल नदी इंद्रायणी बहती है

    तुकाराम की कविता बहाई जाती इसमें

    ताकि भाषा को मिल सके कभी इतिहास में किनारा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतींद्र मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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