महिला पुलिस और उसकी बहन
mahila police aur uski bahan
मैं तो तुझसे बचपन से ही नफ़रत करती रही हूँ
मेरा रिबन चोरी कर लेती थी
मेरी फ़्रॉक के बटन तोड़ देती थी
मेरी गुड़िया छिपा देती थी
मैं तुझे बहुत पहले से बर्दाश्त करती आई हूँ
तू दीदी-दीदी कहती हुई
मेरी चप्पल पहनकर भाग जाती थी
आज इस जुलूस में तुझे सबक सिखाऊँगी
तू मेरे बाल नोचेगी
और मैं तुझे नीचे पटककर डंडे से मारती रहूँगी
जितनी चीख़ेगी उतनी ही मार खाएगी
हमें आदमी जितना क्रूर बनना सिखाया जाता है
हमसे कहा जाता है कि जहाँ कहीं भी महिलाएँ
तोड़फोड़ और बग़ावत पर आमादा हों
उनकी अच्छी तरह धुनाई की जाए
बहुतेरी ऐसी हैं जो आदमी से पिटने पर भी
कुछ नहीं कहती हैं
‘सखाराम बाइंडर? नहीं, नहीं, नाटक वाली बात नहीं’
महिला पुलिस को बहुत सख़्त होना पड़ता है
आदमी क्या जाने कि कौन-कौन से नाज़ुक अंग
हमारे शरीर के उससे बचे हैं
जहाँ डंडा मारने से बरसों तक दुखता रहता है
- पुस्तक : आशा नाम नदी (पृष्ठ 45)
- रचनाकार : ऋतुराज
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2007
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.