युवा नागरिकों से
भारत का एहसास
ज़्यादा होता है
जिस ओर भी उठती है
मेरी निगाह
सड़कें, रेलें, बसें,
चायख़ाने और फ़ुटपाथ
लड़के और लड़कियों से
भरे हुए
वे बातें करते रहते हैं
कई भाषाओं में बोलते हैं कई तरह के संवाद
मैं सुनता हूँ
मैं देखता हूँ देर तक
घर से बाहर निकलने पर
पहले से अधिक अच्छा
लगता है
कितना लंबा गलियारा है
क्रूरताओं का
जिसे पार करते हुए ये युवा
पहुँच रहे हैं पढ़ाई-लिखाई के बीच
दाख़िले के लिए लंबी क़तारें लगी हैं
विश्वविद्यालयों में
यह कोई साधारण बात नहीं है
आज के समय में
वे जीवन को जारी रख रहे हैं
एक असंभव होते जा रहे
गणराज्य के विचार
उनसे विचलित हैं
उनकी सड़कें दुनिया भर में
घूमती हैं
वे कहीं भी बसने के लिए
तैयार हैं
यह सिर्फ़ लालच नहीं है
और न उन्माद
आप पुस्तकालयों में जाइए
और देखिए
इतनी भीड़ युवा पाठकों की
वहाँ कला होती थी
मैं डालता हूँ उनकी भीड़ में
अपने को
मुझे उनसे बार-बार घिर जाना
राहत देता है
आख़िर मैं क्या कर
पाऊँगा उनके बिना?
- रचनाकार : आलोकधन्वा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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