जागो मन के सजग पथिक ओ!
jago man ke sajag pathik o!
मेरे मन के आसमान में पंख पसारे
उड़ते रहते अथक पखेरू प्यारे-प्यारे!
मन का मरु मैदान तान से गूँज उठा
थकी पड़ी सोई-सूनी नदियाँ जागीं
तृण-तरु फिर लह-लह पल्लव दल झूम रहा
गुन-गुन स्वर में गाता आया अलि अनुरागी
यह कौन मीत अगणित अनुनय से
निस दिन किसका नाम उचारे!
हौले-हौले दखिन पवन नित
डोले-डोले द्वारे-द्वारे!
बकुल-शिरिष-कचनार आज है आकुल
माधुरी-मंजरी मंद-मधुर मुस्काई
क्रिश्नझड़ा की फुनगी पर अब रही सुलग
सेमल वन की लहकी-लहकी प्यासी आगी
जागो मन के सजग पथिक ओ!
अलस-थकन के हारे-मारे
कबसे तुम्हें पुकार रहे हैं
गीत तुम्हारे इतने सारे!
- पुस्तक : कवि रेणु कहे (पृष्ठ 89)
- संपादक : भारत यायावर
- रचनाकार : फणीश्वरनाथ रेणु
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 1988
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