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इमर्जेंसी

imarjensi

फणीश्वरनाथ रेणु

और अधिकफणीश्वरनाथ रेणु

    इस ब्लॉक के मुख्य प्रवेश-द्वार के समान

    हर मौसम आकर ठिठक जाता है

    सड़क के उस पार

    चुपचाप दोनों हाथ

    बग़ल में दबाए

    साँस रोके

    ख़ामोश

    इमली की शाखों पर हवा

    ‘ब्लॉक’ के अंदर

    एक ही ऋतु

    हर ‘वार्ड’ में बारहों मास

    हर रात रोती काली बिल्ली

    हर दिन

    प्रयोगशाला से बाहर फेंकी हुई

    रक्तरंजित सुफेद

    ख़रगोश की लाश

    ‘ईथर’ की गंध में

    ऊँघती ज़िंदगी

    रोज़ का यह सवाल, ‘कहिए! अब कैसे हैं?’

    रोज़ का यह जवाब—ठीक हूँ! सिर्फ़ कमज़ोरी

    थोड़ी खाँसी और तनिक-सा... यहाँ पर... मीठा-मीठा दर्द!

    इमर्जेंसी वार्ड की ट्रालियाँ

    हड़हड़-भड़भड़ करती

    ऑपरेशन थिएटर से निकलती है—इमर्जेंसी!

    सैलाइन और रक्त की

    बोतलों में क़ैद ज़िंदगी!

    —रोग-मुक्त, किंतु, बेहोश काया में

    बूँद-बूँद टपकती रहती है—इमर्जेंसी!

    सहसा मुख्य द्वार पर ठिठके हुए मौसम

    और तमाम चुपचाप हवाएँ

    एक साथ

    मुख और प्रसन्न शुभकामना के स्वर—इमर्जेंसी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवि रेणु कहे (पृष्ठ 37)
    • संपादक : भारत यायावर
    • रचनाकार : फणीश्वरनाथ रेणु
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1988

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