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बनारस में पिंडदान

banaras mein pinDdan

लीना मल्होत्रा राव

लीना मल्होत्रा राव

बनारस में पिंडदान

लीना मल्होत्रा राव

और अधिकलीना मल्होत्रा राव

    घाट जब मंत्रों की भीनी मदिरा पीकर बेहोश हो जाते हैं

    तब भी जागती रहती हैं घाट की सीढ़ियाँ

    गंगा ख़ामोश नावों में भर-भर कर लाती हैं पुरखे

    बनारस की सौंधी सड़कों से गिरते पड़ते आते हैं पगलाए हुए पुत्र

    पिंड के आटे में चुपचाप गूँथ देते हैं अपना अफ़सोस

    अंजुरी भर उदासी जल में घोल नहला देते हैं पिता को

    रोली-मोली से सज्जित कुपित पिता

    नहीं कह पाते वे शिकायतें

    जो इतनी सरल थीं कि उन्हें बेटों के अलावा

    कोई भी समझ सकता था

    और इस नासमझी पर बेटों को शहर से निकाल दिया जाना चाहिए था

    किंतु जानते थे तब भी पिता बेटों के निर्वासन से शहर वीरान हो जाएँगे

    भूखे पिता यात्रा पर निकलने से पहले खा लेते हैं

    जौ और काले तिल बेटे के हाथ से

    चूमकर विवश बेटे का हाथ एक बार फिर उतर जाते हैं

    पिता घाट की सीढ़ियाँ

    घाट की सीढ़ियाँ बेटियों-सी पढ़ लेती हैं

    अनकहा इस बार भी

    सघन हो उठती हैं रहस्यों से हवाएँ

    और बनारस अबूझ पहेली की तरह डटा रहता है

    डूबता है बहता नहीं...

    शांति में

    घंटियों में

    मंत्रों में

    शोर में

    गंगा में...।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मेरी यात्रा का ज़रूरी सामान (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : लीना मल्होत्रा राव
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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