हम पोस्टमार्डों की महिमा के गीत गाएँगे
इस मलीन समय में
उन्हें भी उम्मीद दिलाने वाली चीज़ों में
वे आते हैं जैसे कोई थोड़ा-सा ज़्यादा पुराना दोस्त
जिसे ख़ास उम्मीद नहीं जो ज़्यादा फ़ायदेमंद नहीं
जो थोड़ा ज़्यादा ही बेतकल्लुफ़
जैसे घर से कोई रिश्ते का भाई
जो लौट जाएगा अक्सर बिना अधिक बोझा बने
छोड़कर कुछ छोटी-मोटी स्मृतियाँ, बड़ियाँ, अचार
हाँ उनसे तृप्ति नहीं होती
पर वे हमेशा पूरा करते हैं अपना काम।
हम उन फुद्दड़ पीले पोस्टकार्डों की महिमा गाएँगे
ठीक है कभी-कभी वे लाते हैं कोई बुरी ख़बर भी
तब उनकी सूरत होती है
कान-पूँछ दबाए घरेलू कुत्ते की तरह
जो कर आया हो कोई निखिद्द काम
उन्हें फाड़ तक डाला जाता हैं उस समय
कूड़े के ढेर में शराफ़त से सिमटे
वे कोसते तक नहीं अपनी क़िस्मत
हाँ हम तो गाएँगे जी उन शरीफ़ पोस्टकार्डों के
महिमा गीत
जिनके आधा छपे धारीदार मुखड़े का एक कान है शेरछाप
सबसे बड़ी बात तो यह
कि वे मौजूद रहते हैं हर तरफ़
भले लोगों की तरह
ज़रूर वे दिखाई नहीं देते
सजीली लेखन-सामग्री घुसपैठिया पिक्चर पोस्टकार्डों
और रंगीन टेलीफ़ोनों के जंजाल में
मगर पता कर लो, संख्या में सबसे ज़्यादा हैं वे ही
बचकर रहते हैं राजमार्गों से
उन्हें खोना भी सबसे आसान है
फाड़ डालना तो और भी
पर फूँक में नहीं उड़ाया जा सकता उन्हें
उनसे परहेज़ करते हैं राजपुरुष षड्यंत्रकारी
तस्कर और गुप्तचर संचार मंत्री उनसे कुढ़ता है
बूढ़ों के वे प्रिय संदेशवाहक
पहले कड़क थे
धीरे-धीरे मौसम ने म्लान किया उन्हें
मगर उन्होंने विलुप्त न होने दिया
अपने दिल पर लिखे अक्षरों को
भले लोगों की तरह
उन्हें इंतज़ार है उस दिन का
जब उनके चौड़े सीने पर लिखी जाएँगी
प्यार-मुहब्बत की बातें
ऐलानिया!
- पुस्तक : कविता वीरेन (पृष्ठ 164)
- रचनाकार : वीरेन डंगवाल
- प्रकाशन : नवारुण
- संस्करण : 2018
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