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कोई एक और मतदाता

koi ek aur matdata

रघुवीर सहाय

रघुवीर सहाय

कोई एक और मतदाता

रघुवीर सहाय

और अधिकरघुवीर सहाय

    जब शाम हो जाती है तब ख़त्म होता है मेरा काम

    जब काम ख़त्म होता है तब शाम ख़त्म होती है

    रात तक दम तोड़ देता है परिवार

    मेरा नहीं एक और मतदाता का संसार

    रोज़ कम खाते-खाते ऊबकर

    प्रेमी-प्रेमिका एक पत्र लिख दे गए सूचना विभाग को

    दिन-रात साँस लेता है ट्रांजिस्टर लिए हुए ख़ुशनसीब ख़ुशीराम

    फ़ुर्सत में अन्याय सहते में मस्त

    स्मृतियाँ खँखोलता हकलाता बतलाता सवेरे

    अख़बार में उसके लिए ख़ास करके एक पृष्ठ पर दुम

    हिलाता संपादक एक पर गुरगुराता है।

    एक दिन आख़िरकार दुपहर में छुरे से मारा गया ख़ुशीराम

    वह अशुभ दिन था; कोई राजनीति का मसला

    देश में उस वक़्त पेश नहीं था। ख़ुशीराम बन नहीं

    सका क़त्ल का मसला, बदचलनी का बना, उसने

    जैसा किया वैसा भरा

    इतना दुख मैं देख नहीं सकता।

    कितना अच्छा था छायावादी

    एक दुख लेकर वह एक गान देता था

    कितना कुशल था प्रगतिवादी

    हर दुख का कारण वह पहचान लेता था

    कितना महान था गीतकार

    जो दुख के मारे अपनी जान लेता था

    कितना अकेला हूँ मैं इस समाज में

    जहाँ सदा मरता है एक और मतदाता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रघुवीर सहाय संचयिता (पृष्ठ 269)
    • संपादक : कृष्ण कुमार
    • रचनाकार : रघुवीर सहाय
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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