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तितलियों कि भाषा

titaliyon ki bhasha

हिमांक

हिमांक

तितलियों कि भाषा

हिमांक

और अधिकहिमांक

    यदि मुझे तितलियों कि भाषा आती

    मैं उनसे कहता

    तुम्हारी पीठ पर जाकर बैठ जाएँ

    बिखेर दें अपने पँखों के रंग

    जहाँ-जहाँ मेरे चुंबन की स्मृतियाँ

    शेष बची हैं

    ताकि वो जगह

    इस जीवन के अंत तक महफ़ूज़ रहे।

    महफ़ूज़ रहे,वो हर एक कविता

    जिन्होंने अपनी यात्राएँ

    तुम्हारी पीठ से होकर की

    जिनकी उत्पत्ति तुमसे हुई

    और अंत तुम्हारे प्रेम के साथ

    यदि मौन की कोई

    साहित्यिक भाषा होती

    तो मेरा प्रेम, तुम्हारे लिए

    अभिव्यक्ति की कक्षा में

    पहला स्थान पाता

    तुम्हारी आँखों से सीखे हुए

    मौन संवाद पर लिखता

    मैं एक लंबा-सा निबंध

    इतना लंबा की, वो निंबध

    उपन्यास बन जाता

    और हमारा प्रेम

    एक जीवंत मौन कहानी

    मुझे हमेशा से

    आदम जात के शब्दों में

    शोर महसूस हुआ है

    तुमने बताया की

    प्रेम और भावनाओं की भाषा

    उत्पत्ति से मौन रही

    तुम उसी मौन से होकर

    मेरी हर कविता का हिस्सा बनी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हिमांक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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