थोड़ी कम सुंदर हूँ,
कम हूँ दृष्टि में,
विचार में और व्यवहार में भी,
मान्यताप्राप्त सौंदर्य में भी
कम हूँ व्यावहारिक होने में भी
अति भावुकता की आदत से दूर होने के लिए भी
थोड़ी कम संघर्षरत हूँ
पर इतनी भी कमतर नहीं
कि वह मुझे न चुने
एक दिन के साथ और एक रात सहवास के लिए
उसके पास ढेरों औरतों को प्यार करने की वैकल्पिकता होती है,
पर इतनी भी कमतर नहीं हूँ मैं
कि वह मुझे छोड़कर किसी दूसरी को कहता उसका
प्यार, एक क्षण के लिए
यह और बात है कि जिस स्त्री पर उसका दिल रीझ रहा था,
उसके लिहाज़ से वह मुझसे पीछे थी—दिखने में
अपनी मूढ़ता में इस बात पर ख़ुश हो रही थी कि
कम से कम कुछ तो बात थी मुझमें।
कम से कम किसी से तो मैं बेहतर थी।
कम से कम इतना तो था कि उसकी दृष्टि की
कृपा मुझ पर हो रही थी।
इतनी कमतर भी क्या होना चाहिए था मुझे!
—कि मैं इस बात पर ख़ुश हो लेती कि
औरतों के भी होते हैं स्तर।
जबकि मेरे आधुनिक होते हुए भी,
एक यही बात मुझे मध्ययुगीन बना रही थी
और मैं सारा कमरा छोड़कर केवल दर्पण में
किसी बेहतर को खोज रही थी।
- रचनाकार : प्रिया वर्मा
- प्रकाशन : समकालीन जनमत
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