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थेरेसा-दर्शन

theresa-darshan

हरिशंकरन अशोकन

हरिशंकरन अशोकन

थेरेसा-दर्शन

हरिशंकरन अशोकन

और अधिकहरिशंकरन अशोकन

    जान दो जो भी लिखा था

    आन दो जो अब लिखना है

    बीच में खड़ी ख़ालीपन-सी

    तुम…!

    थेरेसा…!

    यह चुम्बन पूरा होने दो

    होने से पहले

    एक और माँगोगे तुम…

    थेरेसा तेरे लब…

    यह जंग ख़त्म होने दो…

    तुम जब यह चादर बिछाओगी

    थेरेसा तुम्हारी ख़ामोशी को

    मैं सिगरेट की धुएँ की तरह

    अंदर खींच लूँगा

    कालीकट रेलवे स्टेशन के

    पहले प्लेटफ़ॉर्म पर तुम

    दूसरे पर मैं

    बीच की रेल से

    गुज़रती हुई मालगाड़ी

    उन डिब्बों के बीच

    बरखा ऋतु-सी

    झलकती तुम

    वही था प्रथम दर्शन…

    प्रेम सुदर्शन…

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : हरिशंकरन अशोकन
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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