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थल-मुवानी जिला-पिथौरागढ़ का पानी

thal muvani jila pithauragaDh ka pani

खेमकरण ‘सोमन’

खेमकरण ‘सोमन’

थल-मुवानी जिला-पिथौरागढ़ का पानी

खेमकरण ‘सोमन’

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    जब पहली बार मिले

    तब कहा उन्होंने मेरे कान में—

    तुम्हें लग गया है—

    थल-मुवानी जिला-पिथौरागढ़ का पानी

    ज़रूर...पूर्वी रामगंगा नदी के साथ

    तुम कर रहे हो ख़ूब-ख़ूब यात्राएँ

    ख़ूब बाँच रहे हो कथा-कहानी जनजीवन

    फिर दूसरी बार कहा उन्होंने—

    अब यहाँ आकर—

    तुम्हें लग गया है मानिला का पानी भी

    देखो...क्या मानिला की तरह हरे-भरे लग रहे हो!

    एक-दो बार आया हूँ मैं भी यहाँ पर,

    बहुत अच्छी जगह है पर समझ नहीं आता—

    अंग्रेज़ों ने अपने समय में इसे—

    क्यों डाला होगा रिजेक्शन लिस्ट में?

    बहरहाल...घूमना ज़रूर मानिला शक्तिपीठ

    इसी वर्ष स्थानांतरित होकर मैं चला गया

    मानिला से पश्चिमी रामगंगा नदी के किनारे

    फिर एक दिन चिट्ठी मिली उनकी—

    तुम्हारी बिलकुल तरोताजा फ़ोटो देख रहा हूँ

    वाट्सअप, फ़ेसबुक-इंस्टाग्राम

    ट्विटर पर—

    तुम्हें लग गया है चौखुटिया, जिला-अल्मोड़ा का

    पानी भी

    अब जब मैं

    मालधनचौड़, जिला-नैनीताल में हूँ

    उनका व्हाट्सअप संदेश आया है—

    देखो...क्या चेहरा है जैसे खिला कमल!

    जैसे खिले हुए सरसों के फूल,

    तुमने अपने मन में उगा लिया है—

    यहाँ के तुमरिया डैम में विचरण करते—

    साइबेरियन पक्षियों की चहक-महक और उमंग

    प्यारे! तुम्हें लग गया है मालधनचौड़ का पानी भी

    जियो...लाख-लाख वर्ष जियो

    वे जानते थे—

    मैंने चुराई उठाई-सँजोई हैं उन्हीं से—

    जीवन-जीने की कलाएँ विधाएँ और इच्छाएँ

    कि जहाँ भी रहो पानी बनकर सरल-तरल रहो,

    ताकि घुल-मिल सको वहाँ के पानी में बेहिसाब

    ताकि लग सके पानी को पानी का रंग-ढंग

    रूप-धूप

    हाँ, वे जानते थे—

    पत्थर कभी घुलते नहीं पानी में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : खेमकरण ‘सोमन’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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