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शिल्पी

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दाशरथि

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    हे शिल्पि, तुम इन कठोर पहाड़ी पत्थरों को

    अपनी इच्छानुसार विलासिनी छैनी से सुनहले तार के समान

    बढ़ाते हो

    और पत्थरों में भी गुदगुदी पैदा करते हो।

    एलोरा की गुफ़ाओं के नित्य नूतन कविताओं के अवतारों ने

    आँख-मिचौनी खेली।

    हे शिल्पि कला के अग्रदूत! हे महामति! तुमने अपनी छैनी

    में वह शक्ति भर दी है,

    जो पत्थरों के हीरे बना सके।

    तुमने मंदिरों के गोपुर-शिखरों पर

    सुंदर कलाकृतियों का निर्माण किया और पर्वत शिखरों पर

    अप्सराओं के नृत्य के लिए मधुर रस-शालाओं की

    कल्पना करके

    सुंदर काव्यों को रूप प्रदान किया है।

    हे शिल्पिकुलावतंस! तुम्हें देखने भर से सभी पर्वत अपने-

    आप रमणियों के कुचों,

    मोहन कपोलों, भृकुटियों और अलकावलि का रूप धारण करके

    अप्सराएँ बन जाते हैं और अपना रूप सँवार लेते हैं तो तुम

    ब्रह्मा बनकर अपनी छैनी से

    उन पर अमृत छिड़काकर जीवन दान देते हो।

    पत्थरों को चूर-चूर करने वाले तुम्हारे हथौड़ों की कड़ी चोटों से

    कृशीभूत पहाड़ियाँ चिल्ला-चिल्लाकर कहती हैं कि

    हे शिल्पिकुलभूषण! तुम जैसा मनोहर रूप लेने का आदेश

    दोगे वैसा रूप धारण करने को हम प्रस्तुत हैं।

    तब हमें इस प्रकार क्यों चूर-चूर कर रहे हो?

    हे कलानिधि! तुमने पत्थर खोदकर जो खंभे बनाए हैं,

    उनसे ऐसी मधुर ध्वनि पैदा करते हैं,

    जैसे इस्पात के तारों से निकलती है।

    कठोर शिलाओं पर जाने किस अनुपात से तुमने छैनी

    चलाई है

    कि वह ऐसा विदित होता है कि रस-राग की सृष्टि करने के लिए

    तुमने अपना हृदय निकालकर पत्थर मे चिपका दिया हो।

    हे शिल्पि! तुम्हारी उस सुदर भुजा दण्ड को देखकर

    जिसमें तुम अपनी चमकीली और कला-वैभव से भरी हुई छैनी

    लिए हुए हो,

    ये सभी पहाड़ियाँ नवनीत के समान द्रवित होती हैं और आँसू

    बनकर बहती हैं।

    वाह! तुम्हारा भी कैसा पौरुष है कि जो प्रस्तरों को भी गला

    देता है।

    तुम्हारे कलापूर्ण कर-कमलों में पड़कर

    प्रत्येक प्रस्तर-खंड एक सुंदर प्रतिमा के सदृश बन जाता है

    और नवयुवती के समान दर्शकों के हृदय को

    गुदगुदाकर राग-रंजित करता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 389)
    • रचनाकार : दाशरथि
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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