प्यार में रुलाई
प्यार में जब रुलाई आती है तो यूँ ही अचानक नहीं आती
उसके पहले संकेतों की लंबी शृंखला होती है
रुलाई के पहले एक आदिम डर आता है
रुलाई के पहले एक आशंका आती है
प्रिय की अच्छी बुरी स्मृतियों से जुड़ती हुई
रुलाई से पहले दिखाई पड़ता है अपना एकाकी तन
और दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं पड़ता
रुलाई के पहले याद आते हैं अच्छे बुरे संयोग
रुलाई के पहले याद आते हैं अच्छे बुरे लोग
जिन्होंने प्यार की राह में काँटे बिछाए या फूल
रुलाई के पहले आँखों में भर जाती है धूल
या फिर हो सकता है ऐसे भी कि
तन को छुए सूरज की कोई गर्म किरन
और रुलाई आ जाए
तन को भिगोए बारिश की रिमझिम फुहार
और रुलाई आ जाए
रुलाई आने के पहले कानों में नहीं बजता करुण संगीत
रुलाई आने के पहले जगह बेजगह भी नहीं देखती
रुलाई तब भी आ सकती है जब ट्रेन में बैठा हो कोई
ट्रेन भागी चली जा रही हो धड़धड़धड़
दिख रहे हों खेत मैदान पेड़ चिड़िया और तालाब
उन सबके बीच दिख रहे हों लोग
और अचानक बग़ल की पटरी पर गुज़रे
धड़धड़ाती हुई कोई रेल
गुम हो जाएँ पल भर के लिए सारे दृश्य
और रुलाई आ जाए
लगी हो एक अबूझ-अछोर प्यास
दरिया मना कर दे देने से अपना पानी
एक खारा समुंदर उग आए हलक़ में
बहे आँखों से होकर के
ऑटो में बैठकर चले जा रहे हो सिर झुकाए
बग़ल से सट कर गुज़रे एक नया-नया प्रेमी जोड़ा
बेशक वे सीख ही रहे हों प्रेम करना
उन्हें देखे आँख और आँखों से बह निकले पानी
प्यार में जब रुलाई आनी होती है तो आ ही जाती है
और रुलाई के इतने कारण एक साथ होते हैं
कि कोई एक कारण नहीं होता
प्यार में रुलाई को आना होता है
तो आ ही जाती है रुलाई
- रचनाकार : मनोज कुमार पांडेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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