प्यार में रुलाई

pyar mein rulai

मनोज कुमार पांडेय

मनोज कुमार पांडेय

प्यार में रुलाई

मनोज कुमार पांडेय

और अधिकमनोज कुमार पांडेय

    प्यार में जब रुलाई आती है तो यूँ ही अचानक नहीं आती

    उसके पहले संकेतों की लंबी शृंखला होती है

    रुलाई के पहले एक आदिम डर आता है

    रुलाई के पहले एक आशंका आती है

    प्रिय की अच्छी बुरी स्मृतियों से जुड़ती हुई

    रुलाई से पहले दिखाई पड़ता है अपना एकाकी तन

    और दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं पड़ता

    रुलाई के पहले याद आते हैं अच्छे बुरे संयोग

    रुलाई के पहले याद आते हैं अच्छे बुरे लोग

    जिन्होंने प्यार की राह में काँटे बिछाए या फूल

    रुलाई के पहले आँखों में भर जाती है धूल

    या फिर हो सकता है ऐसे भी कि

    तन को छुए सूरज की कोई गर्म किरन

    और रुलाई जाए

    तन को भिगोए बारिश की रिमझिम फुहार

    और रुलाई जाए

    रुलाई आने के पहले कानों में नहीं बजता करुण संगीत

    रुलाई आने के पहले जगह बेजगह भी नहीं देखती

    रुलाई तब भी सकती है जब ट्रेन में बैठा हो कोई

    ट्रेन भागी चली जा रही हो धड़धड़धड़

    दिख रहे हों खेत मैदान पेड़ चिड़िया और तालाब

    उन सबके बीच दिख रहे हों लोग

    और अचानक बग़ल की पटरी पर गुज़रे

    धड़धड़ाती हुई कोई रेल

    गुम हो जाएँ पल भर के लिए सारे दृश्य

    और रुलाई जाए

    लगी हो एक अबूझ-अछोर प्यास

    दरिया मना कर दे देने से अपना पानी

    एक खारा समुंदर उग आए हलक़ में

    बहे आँखों से होकर के

    ऑटो में बैठकर चले जा रहे हो सिर झुकाए

    बग़ल से सट कर गुज़रे एक नया-नया प्रेमी जोड़ा

    बेशक वे सीख ही रहे हों प्रेम करना

    उन्हें देखे आँख और आँखों से बह निकले पानी

    प्यार में जब रुलाई आनी होती है तो ही जाती है

    और रुलाई के इतने कारण एक साथ होते हैं

    कि कोई एक कारण नहीं होता

    प्यार में रुलाई को आना होता है

    तो ही जाती है रुलाई

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज कुमार पांडेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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