बात अगर
सिर्फ़ कथ्य की होती
तो मेरे पास
इस कविता के लिए बला का कथ्य है
और रही बात शिल्प की
तो वह तो मैं ढाई-सौ ग्राम क़रीब
अपने बनिए से उधार ले आया हूँ
उसने तो यहाँ तक कहा है
कि अगर माल पसंद न आए
तो सीधे लौटाकर दूसरा ले जा सकता हूँ
दमदार अदायगी के लिए आवाज़ का सौदा
मैंने मदारी से ठीक कर लिया है
एवज़ में मुझे उसके बंदरों को
बस इतना सीखा देना है कि,
बुरा मत सोचो! बुरा मत देखो! बुरा मत बोलो!
और श्रोता तो मुझे मुफ़्त में उपलब्ध हैं
कॉलोनी के वे बूढ़े
जो रेडियो की झिरझिराहट के पार से
समाचार के सिरे पकड़ लेते हैं!
हो सकता है
मसला सिर्फ़ इस काग़ज़ भर का हो
जिस पर मुझे यह कविता उतारनी है!
अब मेरे चित्रकार मित्र को ही लीजिए
कोरा कैनवास भी उसके लिए,
किसी चित्र की महान संभावना की तरह है
वह उसके सामने
मुद्राएँ करता है, कूची से बीन बजाता है
और कुछ ही देर में कैनवास चित्र छोड़ देता है!
कितने अहंकार से देखता है तब वह मेरी तरफ़
और मैं
उचित भंगिमा की तलाश में
बग़लें झाँकने लगता हूँ!
वहीं इस काग़ज़ को देखिए
कैसी मनहूस और बेसूद सूरत है इसकी
इस पर कोई शाहकार क्या ख़ाक दर्ज होगा
काश मुझे भी कैनवास में बसे चित्र की तरह
कविता भी पहले से ही उपलब्ध होती!
पर मैंने भी सोच लिया है
बात अगर उस ज़मीन की है
जिस पर कला को उकेरा जाना है
तो मैं भी इस बार
अपने मित्र को कुंठा से भर दूँगा
और यह नई कविता काग़ज़ पर नहीं
ख़ून से रँगी कमीज़ पर लिखूँगा!!
उसे भी तो पता चले कि,
बाज़ औक़ात हम भी कुछ ख़ब्त रखते हैं!
और रही बात ख़ून से रँगी क़मीज़ों की
तो वो तो बाज़ार में मिलती ही हैं!!
- रचनाकार : सौम्य मालवीय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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