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तारों भरे आँचल को परसों तक नहीं जलाना चाहिए

taron bhare anchal ko parson tak nahin jalana chahiye

पराग पावन

पराग पावन

तारों भरे आँचल को परसों तक नहीं जलाना चाहिए

पराग पावन

और अधिकपराग पावन

    हताशाओं और नाउम्मीदी का महासागर हमेशा डरावना होता है

    फिर भी हौसले का लंगर सफ़र पर निकल ही जाता है

    पराजय की शाम तानाशाहों की हँसी जितनी घृणित और क़ातिल होती है

    पर जज़्बातों के पंछी अपने मंगलगीत कभी नहीं भूलते

    यह भी समझ ही लेना चाहिए कि

    जब तक हमारा घर शून्य नहीं है

    या जब तक हम निर्वात के नागरिक नहीं हैं

    तब तक 'व्यक्तिगत' हिंदी शब्दकोश का व्यर्थतम शब्द है

    कहा नहीं जा सकता कि प्रेमिका की बेवफ़ाई का दुःख

    प्रधानमंत्री के नैतिक पतन का दुःख

    और पट्टीदार से पुश्तैनी पेड़ के विवाद का दुःख

    तत्वतः किस तरह अलग है

    दुःख की यही आदत है

    वह आने के मामूली अवसर को भी गँवाना नहीं जानता

    दुःख के आने के हज़ार तर्क हैं

    और जीवन उन तर्कों में सर्वश्रेष्ठ है

    पर जैसा कि मैंने ऊपर कहा

    मुश्किलों के भेड़ियों की गुर्राहट

    इंसान के पसीने तक पहुँचने से पहले ही

    थक कर सो जाती है

    जिस दर पर दुनिया वाले रास्तों को दफ़ना देते हैं

    वहीं एक रास्ता पैदा होता है और इंसान की अँगुली पकड़कर श्मशान से बाहर ले जाता है

    कहने वाले कहते हैं चाँद पर महज़ मिट्टी है और सभी तारों पर कमोबेश ऐसा ही है

    पर कुछ लोग अब भी तारों से एक आँचल बना रहे हैं

    वे लोग उस तारों भरे आँचल को परसों तक नहीं जलाएँगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पराग पावन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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