तानाशाह
tanashah
इस बार आया
तो पूछा उसने
कि कौन बनेगा करोड़पति
फिर दस सरलतम सवाल पूछे
उदाहणार्थ एक सवाल तो यही
कि तिरंगे में कितने रंग होते हैं
पूछते हुए इसकी वाणी से इतना परोपकार टपक रहा था
कि हमें हर हाल में जीतने की मोहलत दी उसने
और सही जवाब पर
हमारी पीठ ठोंकी
बढ़कर हाथ मिलाया और कुशलतम बुद्धि की
तारीफ़ की दिल खोलकर
फिर भला किसकी मजाल
कि पूछे उससे
कि लेकिन तुम क्या मूर्ख हो अव्वल
जो इतने सरलतम सवालों पर
दिए दे रहे हो करोड़ों
यहाँ तक कि संदेह भी नहीं हुआ तनिक
उसकी किसी चतुर चाल पर
हमारी अचानक अमीरी की ख़ुशी में वह इस क़दर शरीक हुआ
कि नाचने तक लगा हमारे साथ साथ
बल्कि तब
अपने निम्न-मध्य रहन-सहन पर हमें लाजवाब लज्जा हुई
हम निहाल होकर उसकी सदाशयता पर सहर्ष सब कुछ हार बैठे
इस बार आया
तो अपने साथ लाया
देह-दर्शना विश्वसुंदरियों का हुजूम
वे इतनी नपी-तुली थीं कि ख़ुद एक ब्रांडेड प्रॉडक्ट लगती थीं
उनकी हँसी और देह और अदाएँ इतनी कामुक
कि हर क़ीमत उनके लायक़ बनना हमने ठान लिया मन ही मन
तब
गृहस्थी की झुर्रियों और घरेलूपन की मामूलियत
से घिरी अपनी पत्नियों पर
हमें एक कृतघ्न घिन-सी आई
वे शुरू-शुरू में किसी लाचारी और आशंका में
अत्यधिक मुलायम शब्दों में प्रार्थना करती हमारे आगे काँपती थीं थरथर
किंतु इस आपातकाल
से उबरने में उन्होंने गँवाया नहीं अधिक समय
और किसी ईर्ष्या के वशीभूत
मन ही मन
उन्होंने कुछ जोड़ा कुछ घटाया
और हम एक विचित्र रंगमहल में कूद पड़े साथ-साथ
जीवन की तमाम प्राथमिकताओं और पुरखा-विश्वासों
को स्थगित करते हुए हम
अपनी आउटडेटेड परंपराओं
से निजात पाने के लिए दिखने लगे आमादा
यह मानने के बावजूद कि हमारा सारा किया-धरा
ब्रांडेड बनावट के बरक्स
बहुत फूहड़
और हमारी औक़ात
क्षेत्रीय फ़िल्मों के नायक-नायिकाओं से भी गई-गुज़री
फिर भी
एक अजब दंभ में हम
एक आभासी विश्व की पाने के लिए विश्वसनीयता
सब कुछ करने को तत्पर थे फ़ौरन से पेशतर
हमने अपनी अस्मिता से पाया छुटकारा और जींस-पैंट्स और शर्ट्स की
एकरंग आइडेंटिटी में गुम हो गए
हमने खुरच-खुरच कर छुड़ा डाले
अपने मस्तिष्क से चिपके एक-एक विचार
सिवा इस ख़याल के कि अब
हमें सोचना ही नहीं है कुछ
कि हमारे लिए सोचने वाला
ले चुका है इस धराधाम पर अवतार
इस बार आया
तो उसके मुखमंडल पर एक दैवीय दारुण्य था
दहशतगर्दी के ख़िलाफ़
उसने शुरू किया विश्वव्यापी आंदोलन जिसे सब
उसी की पैदाइश मानते रहे थे
अपने पूर्व पापों के पश्चाताप में विगलित उसने
एक देश के ऊर्जा संसाधनों
को पूरे विश्व की पूँजी मानने
का सार्वजनीन प्रस्ताव पेश किया
विरुद्धों से भी कीं वार्ताएँ संधिया कीं रातों-रात
और प्राचीन सभ्यताओं की गारे-मिट्टी से बनी रहनवारियों
को नेस्तनाबूद कर डाला
यहाँ तक कि हाथ-पंखों और कोनो-अँतरों में छुपती लिपियों
और भाषाओं और नक़्क़ाशीदार पतली गर्दनोंवाली सुराहियों को भी
कि अगली पीढ़ियों
को मिल न सके उनका एक भी सुराग़
कि उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े क़तई
नए-नवेले उत्तर-आधुनिक विश्व में
उसने कितना तो ध्यान रखा हमारी भावनाओं का
इस बार आया जबकि कहीं गया ही नहीं था
वह यहीं था हमारे ही बीच
पिछले टाइप्ड तानाशाहों के किरदारों से मुक्ति की युक्ति
में इतना मशग़ूल
इतना अंतर्धान
कि हमें दिखता नहीं था
पूरी तैयारी के साथ आया इस बार तो उसकी क़द-काठी और रंग
बहुत आम लगता था और बहुत अपना-सा
उसने
नदी में डगन डालकर धैर्य से मछलियाँ पकड़ीं
उसकी तस्वीरें छपती रहीं अख़बारों में लगातार
उसने तो
सोप-ऑपेरा की औचित्य-अवधारणा में चमत्कारी चेंज ही ला दिया
टी.वी. पर कई-कई दिनों तक
उसके फ़ुटेज दिखाए जाते रहे जब वह
हमारी ही तरह
अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने गया
और हज्जाम से गाल और गले पर
चलवाता रहा उस्तरा बिना किसी भी आशंका के
उसने कई प्रेम कर डाले और ग़ज़ब तो यह
कि उसने स्वीकार भी किया सरेआम
महाभियोग झेलकर
उसने पेश किया
प्रेम के प्रति ईमानदार समर्पण का नायाब नमूना
और सबका दिल ही जीत लिया
धीरे-धीरे
वह ऐसा सेलिब्रिटी दिखने लगा
कि छा गया पूरे ग्लोब पर अपनी मुस्कुराहट के साथ
राष्ट्रों का सबसे बड़ा संघ घबराकर अंतत:
तय करने लगा अपने कार्यक्रम उसके मन-मुताबिक़
तमाम धर्म राजनीति साहित्य दर्शन वग़ैरह
उसकी शैली से प्रभावित दिखने लगे बेतरह
पर, इन तमाम कारनामों के बावजूद
वह इतना शांत और शालीन दिखता था
कि उसकी इसी एक अदा पर रीझकर
दुनिया के सर्वाधिक प्रतिष्ठित शांति पुरस्कार
के लिए उसका नाम
सर्वसम्मति से निर्विरोध चुन लिया गया
अब सिरफिरों का क्या किया जाए
सिरफिरे तो सिरफिरे
जाने किस सिरफिरे ने फेंककर मार दिया उसे जूता
जो खेत की मिट्टी से बुरी तरह लिथड़ा हुआ था
और जिससे
नकार भरे क़दमों की एक प्राचीन गंध आती थी।
- पुस्तक : बारिश मेेरा घर है (पृष्ठ 89)
- रचनाकार : कुमार अनुपम
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2012
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