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तख़्त और ताज

takht aur taaj

मोहम्मद अनस

मोहम्मद अनस

तख़्त और ताज

मोहम्मद अनस

और अधिकमोहम्मद अनस

    तख़्त और ताज गिरने की बात करने वाली कविताएँ सुन-सुन कर थक गए हो

    तो सुनो मैं भी थक गया हूँ 

    मैं भी थक गया हूँ तुम्हारे खोखले विचारों से जिनसे ख़ौफ़ की बू आती है

    मैं भी थक गया हूँ कबर्ड के एक कोने में टँगे उस फटे हुए कोट के जैसे

    जिसे हर साल रफ़ू करवा के धुलवा के

    उसी टूटे हैंगर में टाँग देते हो मैला होने के लिए

    कैसे इंसान हो?

    किस मज़हब के रखवाले हो?

    टोपी वाले हो 

    तिलक वाले हो

    या दिल ही दिल में

    ईसा को मसीहा मानने वालों में से हो

    यूँ तो पूरे ब्रह्माँड को अपना घर कहते हो

    एक ऐसी दुनिया का सपना देखते हो जिसमें बॉर्डर हों

    और ना ही बाँटने वाली ऊँची दीवारें 

    फिर ये गोला, बारूद, पैलेट गन, इन सबका क्या करोगे?

    अपने पूर्वजों की तरह उम्र भर लड़ते रहोगे?

    आधी इंसानियत को मौत के घाट उतार अब क्या आधी बची हुई के लिए आओगे?

    इतिहास दोहराओगे?

    मासूमों का ख़ून जम चुका है 

    यहाँ की सूखी मिट्टी में

    बलिदानों और बंदूक़ों से 

    डरना छोड़ दिया है आज के इंसानों ने

    आज का आदम कहाँ तक हिजरत करेगा

    अरे उसे तो जन्नत से भी फेंक दिया गया था

    अब दुनिया से हिजरत की हिम्मत जुटा पाना मुश्किल है

    और दुनिया में वक़्त को हरा पाना भी मुश्किल है

    इस जीने और मरने की पाबंदी को आख़िर कब तक अपने झुके हुए कंधों  पे उठा के फिरते रहोगे?

    अरे कभी तो थकोगे

    अरे कभी तो किसी सूखे पेड़ के नीचे आँख लगेगी

    तब शायद होश आए और जोश आए

    और तब शायद दिल की थकान मिटे!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहम्मद अनस
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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