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स्वतंत्रता

swtantrta

गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

 

नंदन की प्यारी छवि से तू प्रकृतिपुरी को सजती है,
आती हैं स्वर्गीय तरंगें जब तव वंशी बजती है।
चिड़ियाँ गगनांगन में उड़कर तेरे गीत सुनाती हैं,
देवी स्वतंत्रते! गुण तेरे स्वर्गदेवियाँ गाती हैं॥

तेरे आराधक निर्भय हो निर्जन-वन में फिरते हैं,
तो भी वे ऊँचे चढ़ते हैं नीचे कभी न गिरते हैं।
तेरे दर्शन का सुख पाकर दुःख दूर हो जाते हैं,
सुनकर तेरी हाँक क्रूर भी परम शूर हो जाते हैं॥

तुझसे विमुख विमुख जीवन से होकर जग में रहते हैं,
पड़े दासता के बंधन में नरक-यातना सहते हैं।
दब जाता अत्याचारों से उनका सिर झुक जाता है,
होता है निश्चय विनाश ही फिर विकास रुक जाता है॥

तेरी ध्वनि सुनते हैं तो भी दुर्लभ दर्शन तेरे हैं,
विपदाओं से घिरे हुए हैं चेरों के भी चेरे हैं।
कर दे हमें सनाथ हाथ दीनों की ओर बढ़ा दे तू,
जीवन-रण में मिले सफलता ऐसा पाठ पढ़ा दे तू॥

आओ-आओ बढ़ो बंधुगण स्वतंत्रता-हुंकार सुनो,
अपने ही हाथों अब अपना करो करो उद्धार सुनो।
स्वतंत्रता देवी के पथ पर यदि निज शीश चढ़ाओगे,
पाओगे तुम सुयश लोक में अंत अमरपद पाओगे॥

साहस तुम्हें स्वयम् वह देगी बल हृदयों में आएगा,
कोटि-कोटि कंठों का गर्जन अवनी-गगन कँपाएगा।
विकट दासता का बंधन यह चूर-चूर हो जाएगा,
अरिदल का अभिमान मिटेगा दैन्य दूर हो जाएगा॥

वीर प्रताप शिवा के पद का निज हृदयों में ध्यान करो,
हे भारत के लाल, पूर्वजों की कृति पर अभिमान करो।
स्वतंत्रता के लिए मरें जो उनका चिर सम्मान करो,
है 'त्रिशूल'1कवि का अन्य उपनाम। अनुकूल समय यह अब अपना बलिदान करो॥

स्रोत :
  • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 101)
  • संपादक : नंद किशोर नवल
  • रचनाकार : गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

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