Font by Mehr Nastaliq Web

स्वप्न

swapn

आशीष यादव

आशीष यादव

स्वप्न

आशीष यादव

और अधिकआशीष यादव

    मैं दिन ढलने के साथ आगे बढ़ रहा हूँ

    शहर के इस हिस्से में झुग्गी है

    जहाँ सरकार का सारा विकास

    दम तोड़ देता है

    देखो! तुम्हारे बग़ल में

    जो बच्चा भूख से बिलखकर

    अब शांत हो गया है

    वहीं बगल में बैठी तुम्हारी कविता

    उस बच्चे को लोरी सुना रही है।

    अब रात हो गई

    सारा शहर पीली रोशनी से भर गया है

    यह हिस्सा तो जर्जर है

    पुराने मकान है

    ऊपर देखो! चौथी मंज़िल पर एक लड़का

    आज के अपने परीक्षा परिणाम से हताश है

    कूदकर जान देने जा रहा है

    हाँ मैं देख पा रहा हूँ

    ध्यान से देखो कवि!

    तुम्हारी कविताएँ उसका हाथ थाम

    समझा रही हैं

    हौसला बढ़ा रही हैं।

    रात बहुत गहरी हो गई है

    मैं अपने कमरे पर भी नहीं जा सकता

    मुझे समझ नहीं रहा कहाँ आराम करूँ

    अरे कवि! अपने बाईं तरफ़ देखो तो सही

    आधा शहर कुत्तों और गायों के साथ

    खुले आसमान की छतरी तले

    फुटपाथ पर सो रहा है

    ध्यान से देखना तुम्हारी कविता भी

    इन सबके साथ चैंन की नींद सो रही है

    तुम भी वहीं बगल में लेट जाओ

    अरे कवि! उठो सुबह हो गई

    सारे रोटी के जुगत-जुगाड़ में चले गए

    अच्छा! तुम ये बताओ मेरी कविता

    बस शहर तक सीमित है

    नहीं नहीं

    ऐसा नहीं है कवि!

    मेरे साथ आप सुदुर गाँव की यात्रा पर चलो

    मैं मिलवाता हूँ आपको आपकी कविताओं से

    गाँव की पगडंडी पर चलते हुए

    अरे कवि! ये बताओ

    तुम्हें याद है

    कि इस स्कूल सामने एक बुढ़िया काकी की

    झोपड़ी हुआ करती थी

    हाँ-हाँ जहाँ से मैं टॉफ़ियाँ लेता था अक्सर

    तो इसका मेरी कविताओं से क्या मतलब?

    देखना शाम को यहाँ आकर

    आपकी कविता 'बुढ़िया काकी'

    इस झोपड़ी के ओसारे में टहलती मिलेगी।

    यह देखो महुआ का पेड़

    सारे चरवाहे आराम फ़रमा रहे हैं

    अरे! तो फिर उनकी बकरी और भेड़

    कौन चरा रहा है?

    तुम्हारी कविता बकरी चरा रही है

    यह सौभाग्य सिर्फ़ तुम्हारी कविताओं को ही हासिल है।

    अभी भी सोच रहे हो

    अपनी कविताओं के बारे में

    तो देखो! उस खेत की मेड़ से

    तुम्हारी कविता काँटा हटा रही है

    गेहूँ की बालियों के साथ गुनगुना रही है

    दूर देखो नदी के तीरे

    तुम्हारी कविता

    घास काटती औरतों के साथ

    लोकगीत गा रही है।

    हे कवि! क्या आप अब भी चिंतित हो?

    नहीं! मुझे मेरा जवाब मिल गया

    पर तुम कौन?

    पूछते हुए कवि

    बिस्तर से उठता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आशीष यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए