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सुसाइड नोट

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सौम्य मालवीय

सौम्य मालवीय

सुसाइड नोट

सौम्य मालवीय

और अधिकसौम्य मालवीय

    अपना सुसाइड नोट ख़त्म करने के बाद

    उसे वो मेज़ पर रखी रोज़मर्रा के सामानों की लिस्ट-सा लगा

    उसने कुछ सतरें और जोड़ीं, अब वो किसी गुज़ारिशी ख़त-सा लगने लगा

    ज़बान फेरबदल की, वो कुछ ज़्यादा ही फ़लसफ़ाई हो गया

    थोड़ी और काँट-छाँट के बाद लगने लगा मानो कोई अकादमिक जिरह हो

    या इल्म के पैंतरों से सना मज़मून

    वह उसे घटाता, बढ़ाता रहा, ख़ुद को रखता, कभी हटाता रहा

    कभी उसका शिकायती लहजा बस में करता

    बेचारगी के इज़हार को छिपाने की कोशिश करता कभी

    ऐसा करते हुए उसे मालूम पड़ा

    कि कब उसका सुसाइड नोट एक कविता में बदल गया

    बेतरतीब पर अचूक, बाक़ी पर बेशक!

    काग़ज़ पर उगी कविता देखकर

    मौत अब उसे सेकंड बेस्ट ऑप्शन लग रही थी...

    क्या ज़िंदगी से लड़ते रहने के लिए

    बस इतना ही काफ़ी नहीं है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्य मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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