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सुनना बेआवाज़ उदासियाँ

sunna beavaz udasiyan

श्रीधर करुणानिधि

श्रीधर करुणानिधि

सुनना बेआवाज़ उदासियाँ

श्रीधर करुणानिधि

और अधिकश्रीधर करुणानिधि

    जिनके घर नहीं

    उनके सामने मत कहना

    'मेरा घर ऐसा है कि समुद्र झाँकता है

    मेरी खिड़कियों से...'

    बहुत पानी है वहाँ समुद्र में

    दरिया का सारा पानी बहकर

    एक दिन चला जाएगा उसके पास

    हज़ारों-हज़ार कमरे वाले घर हैं

    जिन समुद्र जैसे लोगों के पास

    क्या करते हैं वे उन कमरों का?

    उनकी नींद कहाँ-कहाँ करवटें बदलती हैं!

    लगता है बाढ़ के पानी में छिने हुए घर

    बहते-भंसते गए हैं इन्हीं के पास

    और लोग इधर-उधर भटक रहे हैं

    उनींदे और बेघर...

    लाखों लोगों के बटुए से सारा धन

    निकलकर जा रहा है कुछ ही महासागर के पास

    महासागरों को तब भी चैन नहीं...

    उन्हें और अधिक चाहिए

    हज़ारों-हज़ार बीघा ज़मीनें

    हज़ारों-लाखों पेड़, पहाड़

    बस्तियाँ...

    कौन निगल रहा है इनको?

    जब भी आसमान ठानता है

    बेघरों की सूची को और बढ़ा देता है

    कौन मरता है ठनके से

    धन रोपनी के वक्त

    कौन खदानों में दबकर रह जाता है

    कौन बेदखल होता है

    पहाड़ों से

    नदियों के किनारों से

    राजपथ जब अपनी बाहें फैलाता है

    तब किनकी झुग्गियाँ आती हैं उसके चपेटे में

    किसी बेघर के सामने मत सुनाना

    दरिया किनारे घर की आवोहवा के क़िस्से

    बस सुन लेना उनकी बेआवाज़ उदासियाँ...

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीधर करुणानिधि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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